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है; क्योंकि घर में धन होने पर भी वह उसे काम में नहीं ला सकता। लोभ से असन्तोष की वृद्धि होती है, और सन्तोष का सुख खाक में मिल जाता है। लोभ से भूख बढ़ती है और तृप्ति घटती है। लोभ से मूल धन व्यर्थ बढ़ता है, और उसका उपयोग कम होता है। लोभी का धन देखने के लिए, वृथा रक्षा करने के लिए और दूसरों को छोड़ जाने ही के लिए होता है। ऐसे धन से क्या लाभ ? ऐसे धन को इकट्ठा करने में अनेक कष्ट उठाने की अपेक्षा संसार भर में जितना धन है, उसे अपना ही समझना अच्छा है। क्योंकि लोभी का धन उसके काम तो आता नहीं; इसलिए उसे दूसरे का धन, मन ही मन, अपना समझने में कोई हानि नहीं। उससे उलटा लाभ है; क्योंकि उसे प्राप्त करने के लिए परिश्रम नहीं करना पड़ता। लोभियों को ख़ज़ाने के सन्तरी समझना चाहिए। लोभी मनुष्य जब तक जीते हैं, तब तक सन्तरी के समान अपने धन की रखवाली करते हैं और मरने पर उसे दूसरों के लिए छोड़ जाते हैं।

कोई कोई लोभी, अपने पीछे, अपने लड़कों के काम आने के लिए धन इकट्ठा करते हैं। उनको यह समझ नहीं कि जिस धन के बिना उनका काम चल गया, उसके बिना उनके लड़कों का भी चल जायगा। इस प्रकार बाप-दादे का धन पाकर अनेक लोग बहुधा उसे बुरे कामों में लगा कर खुद भी बद- नाम होते हैं और अपने बाप-दादे को भी बदनाम करते हैं।

धनवान् यदि लोभी है तो उसे रात को वैसी नींद नहीं

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