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से वे सब अमेरिका गये। वहाँ कार्ला नामक, भारतीय पहल वान की कुश्ती विस्को के साथ हुई। बिस्को ने उसे दो दफे पछाड़ा । कार्ला ने वहाँ उस दुरपनेय कलङ्क से भारतीय पहलवानों का मुँह काला कर दिया। अहमद बख्श वगैरह इस आशा से अमेरिका गये थे कि संसार के सर्वश्रेष्ठ पहलवान फ्रांक गोच (Frank Gotch) के साथ कुश्ती खेलेंगे । किन्तु धूर्तराज गोच लड़ने पर राज़ी न हुआ । लोगो के बहुत समझाने बुझाने का भी कुछ फल न हुआ । तब सारे भारतीय पहलवान निराश होकर स्वदेश लौट आये।

कोई दो वर्ष का समय हुआ, श्रीयुक्त बाबू यतीन्द्रमोहन गुह उर्फ गोबर विलायत गये । इंगलैंड-वासी गोबर की व्यायाम-पद्धति देख कर आश्चर्यचकित हो गये। हेल्थ एंड स्ट्रग्थ ( Health and Strength ) नाम की पत्रिका न गोबर की बड़ी प्रशंसा की । लिखा-

"Gobar, for instance, who is in England now, swings clubs that no ordinary English man could lift, and carries a stone-collar of prodigious weight round his neck."

अर्थात् गोबर इतने वज़नी मुद्गर हिलाता है जितने कोई मामूली अंगरेज़ उठा भी नहीं सकता । वह अपनी गर्दन में पत्थर को एक बहुत वज़नी घेरा डाल कर मज़े में घूमता फिरता है।

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