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भोगने और तिरस्कार पाने पर भी अपने कर्तव्य से च्युत नहीं हुए। आपकी धर्म-पत्नी, आपके सुयोग्य पुत्र -- सभी आपके व्रत के व्रती हुए। आपके सहायकों ने भी आपका पूरा साथ दिया। उनमें से मिस्टर पोलक और मिस्टर कालनबाक आदि विदेशी सज्जनों तथा २५०० से ऊपर हिन्दुस्तानियों ने कड़ी जेल की सज़ा भी भुगती।

हमें दक्षिणी अफ़रीक़ा के हिन्दुस्तानियों के मुख-पत्र इंडियन ओपिनियन का एक विशेष अङ्क (Golden Number) मिला है। यह पत्र श्रीयुत गांधी ही का निकाला हुआ है। फीनिक्स नामक स्थान से अँगरेज़ी और गुजराती में निकलता है। उसके इस अङ्क में पूर्वोक्त निष्क्रिय-प्रतिरोध की बड़ी ही हृदय-द्रावक कहानी है। मिस्टर गांधी और अन्यान्य नामी नामी आदमियों की सम्मतियाँ भी हैं। जेल में जाने तथा अन्य प्रकार की सहायता देनेवाले नर-नारियों के छोटे-मोटे १३८ चित्रों से यह अङ्क विभूषित है। यह मिस्टर गांधी के निष्क्रिय प्रतिरोध की यादगार में निकाला गया है। दिव्य है। पढ़ने और संग्रह में रखने की चीज़ है।

पाठकों को यह मालूम ही होगा कि श्रीयुत गांधी अब भारतवर्ष लौट आये हैं।

[ अप्रैल १९१५.
 

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