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बढ़ने के साथ साथ नहर को और भी चौड़ा और गहरा बनाने की आवश्यकता हुई। नहर की चौड़ाई और गहराई जितनी शुरू में रक्खी गई थी, उतने से बृहदाकार जहाज़ों को आने जाने में कठिनता पड़ने लगी । इसलिए नहर के अधिकारी उसे बढ़ाने की तजवीज़ बहुत दिनों से कर रहे थे। अन्त में निश्चय हुआ कि नहर का आकार दूना कर दिया जाय और काम इस तरह किया जाय जिसमें जहाज़ों के आने जाने में कोई असुविधा न हो। इसके लिए १९०१ ईसवी में डेढ़ करोड़ रुपये की मंजूरी हुई। कोई दस बारह वर्ष में यह काम ख़तम हुआ।

३१ दिसम्बर १९०६ तक इस नहर के बनाने में कुल ३६,७४,९०,५२० रुपये ख़र्च हुए थे। पर जहाँ इसके बनाने का ख़र्च इतना बढ़ा है, वहाँ इससे आमदनी भी खूब बढ़ी है और हर साल बढ़ती जाती है। १८७६ में इससे १,८७,०४,८१४ रुपये की आमदनी हुई थी। वही बढ़कर १९०६ में ६,७१,९३,४७२ रुपये हो गई। अर्थात् तीस वषौं में चौगुनी के लगभग हो गई। जिस कम्पनी के अधिकार में यह नहर है, उसके हिस्सेदार इससे खूब लाभ उठाते हैं। पहले की अपेक्षा उनका लाभ पाँच छः गुना अधिक हो गया है। इस अधिक आमदनी का कारण यह है कि इस नहर के रास्ते बहुत जहाज़ निकलते हैं। अकेले १९०६ ईसवी में ३९७५ जहाज़ इससे होकर निकले थे।

अरब का रेगिस्तान संसार में प्रसिद्ध है। यह नहर उससे बहुत दूर नहीं है। इसलिए नहर के अधिकारियों को सदा

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