इस नक्शे में बौद्धों तथा अन्य धर्मवालों का हिसाब नहीं
दिया गया। इस लेखे से सिद्ध है कि योरपवालों की एक भी
स्कूल जाने योग्य उम्र की लड़की ऐसी नहीं जो शिक्षा न पा
रही हो। इनसे उतर कर पारसियों का नंबर है। फिर देसी
किरानियों का, फिर कहीं हिन्दुओं का। परदे के दास मुसल-
मानों में गत ५ वषौं में, देखिए, स्त्री-शिक्षा की कितनी वृद्धि
हुई है। उनकी लड़कियों की संख्या ७५ फी सदी बढ़ गई;
पर हमारे ब्राह्मण देवताओं की लड़कियों की संख्या में केवल
१९ फी सदी की वृद्धि हुई। अब बात बात पर मनु की दुहाई
देने और --
"स्वं स्वं चरित्र शिक्षेरन् सकाशादग्रजन्मनः।"
का घोष करनेवाले अग्र-जन्माओं से किस बात की शिक्षा ली जाय? जिस विद्या और शिक्षा की बदौलत वे बड़े हुए हैं, उसमें तो अनुजन्मा अब्राह्मणों ही से उन्हें उलटा उपदेश लेना चाहिये। गार्गी वाचक्नवी का चरित गाने ही से क्या लड़कियाँ शिक्षित हो जायँगी?
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