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स्कूलों और कालेजों तथा उनमें शिक्षणीय विषयों का विवेचन है। राजा और तअल्लुकेदारों के लड़कों की शिक्षा, यूरोप के निवासियों के बच्चों की शिक्षा, अपाहजों और पागलों की शिक्षा, असभ्यों और अनायौं की शिक्षा और स्त्री-शिक्षा पर भी विचार किया गया है। हमारे मुसलमान भाइयों की शिक्षा का विचार एक अलग अध्याय में किया गया है। उनको यह महत्व इस- लिए दिया गया है कि वे शिक्षा में बहुत पिछड़े हुए हैं। अब तक वे पुरानी नवाबी और बादशाही के स्वप्न ही, घर बैठे, देखते रहे हैं। शिक्षा की तरफ उनका विशेष ध्यान नहीं रहा । उर्दू, फारसी और अरबी के जाल में फंसने से भी उन्हें आवश्यकीय सांसारिक शिक्षा प्राप्त करने का कम मौका मिला है। इसी से सरकार यह चाहती है कि वे अब अधिक शिक्षित हो जायँ और पुराने स्वप्न देखना भूल जायें । तथास्तु । नहीं कह सकते कि यह इतनी उपयोगी रिपोर्ट हिन्दी के किन किन समाचारपत्रों को मिली है या मिलेगी। हमारी प्रार्थना तो यह है कि जिन को न मिले, वे भी ४) खर्च करके इसे मँगावें और इससे लाभ उठावे-इसकी समालोचना करें, और जिस विषय में जरूरत समझे, गवर्नमेंट को सलाह भी दें।

( २ )

शिक्षा की दशा

१६०७ ईसवी में सारे भारतवर्ष में सिर्फ ५४ लाख लड़के शिक्षा पाते थे। परन्तु ५ वर्ष बाद, अर्थात् १९१२ ईसवी में यह

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