होता है। अतएव जहाज़ और सब-मरीन के वेग, तथा टार
पीडो के वेग का भी हिसाब लगा कर, जहाज़ के कुछ दूर
आगे लक्ष्य बाँध कर निशाना लगाया जाता है। हिसाब ठीक
होने से टारपीडो की ठोकर जहाज़ पर लगती है। ठोकर
लगते ही टारपीडो का स्फोट होता है और जहाज़ के टुकड़े
टुकड़े होकर वह डूब जाता है। निशाना चूकने से टारपीडो
का प्रहार व्यर्थ जाता है।
इस सब-मरीन धूम्रपोत का अन्तर्भाग मनुष्य की कल्पना-
शक्ति का बड़ा ही उत्कृष्ट उदाहरण है। पर खेद इस बात का
है कि यह शक्ति युद्ध में मनुष्यों का संहार करने के काम में
लाई जाती है। इस पोत के भीतर वायु-परीक्षक यन्त्र रहते
हैं। पानी के भीतर पोत के जाने पर यन्त्रों की सहायता से
वायु की परीक्षा की जाती है कि वह श्वासोच्छ्वास के लिए
यथेष्ट शुद्ध है या नहीं। तिस पर भी अनेक दुर्घटनायें होती
हैं। ऐसे पोत यदि कदाचित् समुद्र के ठेठ तल-प्रदेश तक
पहुँच जाते हैं, तो फिर उनको ऊपर उठाना कठिन हो जाता
है। वे जहाँ के तहाँ ही पड़े रह जाते हैं और तद्भत मनुष्यों
के प्राण गये बिना प्रायः नहीं रहते। उनको ऊपर निकालने
के लिए एक विशेष प्रकार की अलग ही नौकायें बनाई गई
हैं। तथापि उनकी सहायता से भी मनुष्यों के प्राण बहुत कम
बचते हैं। ऐसा प्रसङ्ग पड़ने पर इन सब-मरीन धूम्रपोतों के
भीतर के मनुष्यों की प्राण-रक्षा के लिए एक विलक्षण शिरस्त्राण
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