पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/८४

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६८ श्रीमद्भगवद्गीता इष्टम् । न तावत् नित्यानां कर्मणाम् अभावाद् एव | तथा नित्यकोंके अभावसे ही भावरूप भावरूपस्य प्रत्यवायस्य उत्पत्तिः कल्पयितुं । प्रत्यवायके उत्पन्न होनेकी भी कल्पना नहीं की जा शक्या 'कथमसतः सज्जायेत (छान्दो०६।२१२) | सकती, क्योंकि, 'असत्ले सत्की उत्पत्ति कैसे हो सकती है ?' इस प्रकार अभावसे भावकी उत्पत्तिको इति असतः सजन्मासंभवश्रुतेः। असम्भव बतलानेवाले श्रुतिके वचन हैं । यदि विहिताकरणाद् असम्भाव्यम् अपि यदि कहो कि (कमोंके अभावसे भावरूप प्रत्यवाय) प्रत्यवायं ब्रूयाद् वेदः तदा अनर्थकरो वेदः ! असम्भव होनेपर भी त्रिहित कर्मोके न करनेसे प्रत्यवायका होना वेद बतलाता है, तब तो यह कहना अप्रमाणम् इति उक्तं स्यात् । हुआ कि वेद अनर्थकारक और अप्रामाणिक है। विहितस्य करणाकरणयोः दुःखमात्र- क्योंकि (ऐसा माननेसे) वेद-विहित कौके करने फलत्वात् । और न करने दोनोंहीमें केवल दुःख ही फल हुआ । तथा च कारकं शास्त्रं न ज्ञापकम् इति | इसके सिवा शास्त्र ज्ञापक नहीं बल्कि अनुपपन्नाथ कल्पितं स्यात् । न च एतद् है, ऐसा युक्तिशून्य अर्थ भी मानना हुआ * । कारक है अर्थात् अपूर्व शक्ति उत्पन्न करनेवाला यह किसोको इष्ट नहीं है। तस्मात् न संन्यासिनां कर्माणि अतो! सुतरां यह सिद्ध हुआ कि संन्यासियोंके लिये | कर्म नहीं है, अतएव ज्ञानकर्मका समुच्चय भी ज्ञानकर्मणोः समुच्चयानुपपत्तिः। | युक्तियुक्त नहीं है। 'ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिः' इति तथा 'ज्यायसी चेत् कर्मणस्ते मता बुद्धिः' इत्यादि अर्जुनके प्रश्नोंकी संगति नहीं बैठनेके कारण अर्जुनस्य प्रश्नानुपपत्तेः च । भी ज्ञान और कर्मका समुच्चय नहीं बन सकता । यदि हि भगवता द्वितीये अध्याये ज्ञानं कर्म क्योंकि यदि दूसरे अध्यायों भगवान्ने अर्जुनसे च समुच्चयेन त्वया अनुष्ठेयम् इति उक्तं स्यात् | यह कहा होता कि ज्ञान और कर्म दोनोंका तुझे ततः अर्जुनस्य प्रश्नः अनुपपन्नो ज्यायसी एक साथ अनुष्ठान करना चाहिये तो फिर अर्जुन- चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिः जनार्दन' इति । का यह पूछना नहीं बनता कि 'हे जनार्दन!यदि कमौकी अपेक्षाआप ज्ञानको श्रेष्ठ मानते हैं' इत्यादि। अर्जुनाय चेद् बुद्धिकर्मणी त्वया अनुष्ठये यदि भगवान्ने अर्जुनसे यह कहा हो कि तुझे इति उक्ते या कर्मणो ज्यायसी बुद्धिः सा | ज्ञान और कर्मका एक साथ अनुष्ठान करना अपि उक्ता एव इति तत्ति कर्मणि घोरे मां चाहिये, तब जो कर्मोकी अपेक्षा श्रेष्ठ है, उस ज्ञानका नियोजयसि केशव' इति प्रश्नो न कथञ्चन (सम्पादन करनेके लिये) भी कह ही दिया गया, फिर यह पूछना किसी तरह भी नहीं बन सकता कि उपपद्यते। 'तोहे केशव मुझे धोरकों में क्यों लगाते हैं।'

  • वास्तवमें शास्त्र केवल पदार्थों की शक्तिको बतलानेवाला है, उनमें नवीन शक्ति उत्पन्न करनेवाला नहीं है।