पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/११२

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श्रीमद्भगवद्गीता या वासुदेवे : अनीश्वरासर्वज्ञाशङ्का मूर्खाणां भगवान् श्रीवासुदेवके विषयमें मुल्की जो ऐसी तां परिहरन श्रीभगवानुवाच यदर्थो हि शंका है कि ये ईश्वर नहीं हैं, सर्वज्ञ नहीं हैं तथा अर्जुनस्य प्रश्नः- जिस शङ्काको दूर करनेके लिये ही अर्जुनका यह प्रश्न है, उसका निवारण करते हुए श्रीभगवान् बोले- बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन । तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप ॥ ५॥ बहूनि मे मम व्यतीतानि अतिक्रान्तानि हे अर्जुन ! मेरे और तेरे पहले बहुत जन्म हो जन्मानि तव च हे अर्जुन तानि अहं वेद जाने चुके हैं । उन सबको मैं जानता हूँ, तू नहीं सर्वाणि न त्वं वेथ जानीषे, धर्माधर्मादिप्रतिबद्ध- जानता; क्योंकि पुण्य-पाप आदिके संस्कारोंसे ज्ञानशक्तित्वात् । तेरी ज्ञानशक्ति आच्छादित हो रही है। अहं पुनः नित्यशुद्धबुद्धमुक्तखभावत्वाद् परन्तु मैं तो नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्त-स्वभावबाला अनावरणज्ञानशक्तिः इति वेद अहं हे | हूँ, इस कारण मेरी ज्ञानशक्ति आवरणरहित है, परंतप ॥५॥ | इसलिये हे परन्तप ! मैं (सब कुछ) जानता हूँ ॥५|| कथं तर्हि तव नित्येश्वरस्य धर्माधर्माभावे : तो फिर आप नित्य ईश्वरका पुण्य-पापसे अपि जन्म इति उच्यते- सम्बन्ध न होनेपर भी जन्म कैसे होता है ? इस- पर कहा जाता है-- अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् । प्रकृति स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ॥ ६॥ अजः अपि जन्मरहितः अपि सन् तथा यद्यपि मैं अजन्मा--जन्मरहित, अव्ययात्मा- अव्ययात्मा अक्षीणज्ञानशक्तिस्वभावः अपि सन् | अक्षीण ज्ञानशक्ति-स्वभाववाला और ब्रह्मासे लेकर तथा भूतानां ब्रह्मादिस्तम्बपर्यन्तानाम् ईश्वर स्तम्बपर्यन्त सम्पूर्ण भूतोंका नियमन करनेवाला ईशनशीलः अपि सन्, प्रकृति खां मम वैष्णवीं ईश्वर भी हूँ, तो भी अपनी त्रिगुणात्मिका वैष्णवी मायां त्रिगुणात्मिका यस्या वशे सर्व जगद् मायाको, जिसके वशमें सब जगत् बर्तता है और वर्तते यया मोहितं सन् स्वम् आत्मानं वासुदेवं | जिससे मोहित हुआ मनुष्य वासुदेवरूपअपने आपको न जानाति, तां प्रकृति खाम् अधिष्ठाय वशीकृत्य ! नहीं जानता, उस अपनी प्रकृतिको अपने वशमें संभवामि देहवान् इव भवामि जात इव आत्ममायया रखकर केवल अपनी लीलासे ही शरीरवाला-सा आत्मनो मायया ने परमार्थतो लोकवत् ॥६॥ जन्म लिया हुआ-सा हो जाता हूँ, अन्य लोगोंकी भाँति वास्तवमें जन्म नहीं लेता ॥६॥ तत् च- जन्म: कदाः किमर्थं च इति उच्यते- बह जन्म कब और किसलिये होता है ? सो कहते हैं---