पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९३

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७४ ७४. ...............श्रीभक्तमाल सटीक ।.. P .. HindiNewSHARELUMH010 . E 4- N HANDIRL (११) श्रीउद्धवजी (१२) श्रीश्रम्वरीषजी (१३) श्रीविदुरजी (१४) श्रीअक्रूरजी (१५) श्रीसुदामाजी (१६) श्रीचन्द्रहासजी (१७) श्रीचित्र- केतुजी (१८) गजराज (१६) ग्राह (२०) पाण्डव [१ श्रीयुधिष्ठिर- जी २ श्रीअर्जुनजी ३ भीमसेनजी ४ नकुलजी ५ सहदेवजी] (२१) श्रीमैत्रेय मुनिजी (२२) श्रीकुन्तीजी (२३) श्रीकुन्तीवधूजी जिनकी लज्जा दुःशासन के पट छीनते समय श्रीप्रभु ने रक्खी है सो अर्थात् श्रीद्रौपदीजी॥ (३५) टीका । कवित्त 1(८०८) हरि के जो वल्लभ हैं दुर्लभभुवन माँझतिनही की पदरेणु भासा जिय करी है। योगी, यती, तपी, तासों मेरो कछु काज नाहिं प्रीति परतीति रीति मेरी मति हरी है । कमला, गरुड़, जाम्बवान, सुग्रीव, आदि, सबै स्वादरूप कथा पोथिन में धरी है । प्रभु सों सचाई जग कीति चलाई अति मेरे मन भाई मुखदाई रस भरी है ।॥ २६ ॥ (६०३) वात्तिक तिलक। श्रीहरि के वल्लभ जगत् में परम दुर्लभ हैं, सो मैंने उन्हीं के पदरजरेणु की आशा की है । और कोरे योगी यती तपस्वी लोगों से मुझे कुछ काय्ये नहीं है, मेरी मति को तो श्रीभगवत् के प्यारों की "प्रीति" "प्रतीति" और "रीति" ने ही हर ली है। पूर्व कथित भक्तों में, श्रीलक्ष्मीजी, श्री- गरुड़जी, श्रीजामवन्तजी, श्रीसुग्रीवजी आदिकों की भक्तिरसास्वादरूपी कथाएँ तो पुराणों में प्रसिद्ध ही हैं, जिन्होंने प्रभु से सच्ची प्रीति करके जगत् में अपनी कीर्तियाँ फैलाई हैं, और मुझे अत्यन्त ही भली लगी हैं क्योंकि रसीली तथा सुखदाई हैं । चौपाई। वन्दनीय पद पंकज तिन्हके । सियपियपिय, प्रिय सियपिय जिन्हके ॥ (१४) श्रीलक्ष्मीजी। जगज्जननी श्रीलक्ष्मीजी महारानी तथा श्रीमन्नारायणजी, गिरा अर्थ 1 सोलही पारषद तथा पाँचो पाण्डव समेत ४२ (बयालीस) हरिवल्लभो के नाम इस (पाँचवे) छप्पय में है।