पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९२८

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । श्रीसोभूरामजी की कृपा प्रसन्नता पाके अति मसन्न मन से, सब जीवों को कृपादृष्टि से देखते थे। (२२४)श्रीगोविंददासजी “भक्तमाली"। ( ८१२ ) छप्पय । ( ३१) "भक्त रत्नमाला" मुधन, गोविंद" कंठ विकास किय ॥ रुचिर सीलघननील लील रुचि, सुमति सरित पति। बिबिधि भक्त अनुरक्त, व्यक्त बह चरित चतुर् अति॥ लघु दीरघु सुरसुद्ध बचन अविरुद्ध उचारन । बिस्व बास विस्वास दास परिचय विस्तारन ॥जानि जगत हित, सब गुननि सुं सम, "नरायनदास दिय । "भक्तंरत्नमाला सुधन गोविंद" कंठ बिकास किय ॥ १६२॥ (२२) वात्तिक तिलक। श्रीभगवद्भक्त नामयशरूपी स्त्रों की महामूल्य माला (यह भक्तमाल ग्रंथ) श्रीगोविंददासजी के कंठ में विकसित हुई, अर्थाद उन्होंने पठान (कण्ठस्थ) किया। आप अतिसुन्दर शीलवान, श्रीरामधन- श्यामसुन्दरजी की लीला में रुचिवाले सुन्दर मति के सिंधु ही थे। अनेक भक्तों में अनुराग करनेवारे, और उन भक्तों के यथार्थ स्पष्ट चरित्रों के जाननेवाले, अति चतुर थे । श्रीभकमाल पढ़ते में जहाँ जैसा लघु दीर्घ अधर और स्वर चाहिए वहाँ वैसे ही शुद्ध अविरुद्ध शब्द उच्चारण करते थे। विश्व निवासी भगवान का सदा विश्वास करनेवाले, संतों के परिचय को अर्थात् जो परीक्षा भाव प्रगट हुए, उनको आप विस्तार- पूर्वक कहा करते थे। २"श्रीनारायणदास" जी श्रीनाभाजी गोस्वामी भक्तमाल कर्ता। "भक्त-रलमाला" यही "भक्तमालग्रंथ ।।