पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८९४

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । ८७५ नवीन फल सपूत पूत श्रीपरशुरामजी श्रीहरि और हरिदासों की सेवा टहल में तत्पर हुये। तथा हरियशयुक्त कवित्त अति सरस रचते थे। श्री १०८ सुरसुरानन्दस्वामीजी के संप्रदाय में दृढ़ श्रीकेशव लटेराजी अति- शय उदार मनवाले हुये । स्वामी श्री १०८ सुरसुरानन्दजी की जय ।। (२०५) श्रीकेवलरामजी॥ (७७२) छप्पय । (७१) "केवलराम” कलियुग के पतित जीव पाचन किये। भक्ति भागवत बिमुख जगत, गुरु नाम न जानें । ऐसे लोक अनेक ऐचि सनमारग आनैं। निर्मलरति निहकाम अजाते सदा उदासीतत्त्वदरसी तमहरन, सील करना की रासी॥तिलक दाम नवधा रतन, कृष्णकृपा करिदृढ़ दिये । "केवलराम” कलियुग के, पतित जीव पावन किये ॥ १७३॥ (११) वात्तिक तिलक। श्रीकेवलरामजीने कलियुग के पतित जीवोंको पावन किया ।जो जगत् के जीव भक्ति भक्त भगवंत गुरु को नाममात्र भी नहीं जानते थे, उनको भी विमुखता से खींचकर, भक्ति सतमार्ग में प्रारूदकर दिया। प्रभुके विषे आपकी निर्मल प्रीति थी, विषयसुख से निष्काम, माया से सदा उदासीन रहते थे। अनात्म,प्रात्म, परमात्म तीनों तत्वों को ज्ञान- दृष्टि से यथार्थ देखनचाले विवेकी थे और सब जीवों का अज्ञानरूपी अन्धकार हरनेवाले, शील और करुणा की राशि ही थे । आपने जीवों को तिलक कंठी माला और नवधा भक्तिरूपी रत्न तथा श्रीकृष्णपालुता भले प्रकार दृढ़ा दी । इस प्रकार कलियुग के बहुत से पतित जीव आपने पावन किये।