पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८४६

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८२७ - + + + N + + a nd - - - - - - -- -- भक्तिसुधास्वाद तिलक । प्रकार विचरते थे कि श्रीगोविन्ददेवजी की भोर मंगला आर्ती का दर्शन, और श्रीकेशवदेवजी की शृंगार बाती का दर्शन कर, राजभोग नन्दग्राम में देखते । गोवर्द्धनजी राधाकुंड होकर चौथे पहर वृन्दावन में आ जाते थे। एक बेर पावन मानसरोवर पर देवयाग से तीन दिन भूखे रह गये। तब भक्तवत्सल प्रवीण श्रीनन्दकुमारजी ने सुंदर मनुष्यरूप से दूध लाके पान कराया। श्रीचतुरदासजी को वह रूप बड़ा प्यारा लगा। बोले कि "थोड़ा जल भी पिला दो॥" ___ आप पानी लेने को गये, फिर कहाँ देख पडै ? उस रूप के वियोग से नागाजी को बड़ा दुख हुआ, तब रात्रि को स्वप्न में श्रीप्रभु ने कहा कि “वह दूध मैं ही तुमको पिला गया था ॥" सवैया। ' "डोलत हैं इक तीरथ, एकनि बार हजार पुरान बके हैं। एक लगे जप में, तप में, इक सिद्धि समाधिन में अटके हैं । ब्रूमि जो देखत हो, रसखानि जू सूद महा सिगरे भटके हैं। साँचे हैं वे, जिन प्रापनज्यौं, इहि साँवरी श्यामपै वारि छके हैं।॥ १॥" (७१४) टीका । कवित्त । (१२९) "पानी सौं न काज, ब्रजभूमि मैं बिराज दूध, पावो घर घर," यह श्राज्ञा प्रभु दई है । एतो ब्रजवासी सब क्षीर के उपासी, कैसे 'मोको लेन दैहैं ?” कही "देहैं," सुनी नई है ॥ डोल धाम धाम श्याम कह्यौ जोई मानि लियौ, दिया परचे हूँ, परतीति तब भई है । कहाँ जा 'चिपा पात्र, बेगि आप हँढ़ि, ल्या, अति सुख पार्वे, कीनी लीला

रसमई है ।। ५६६ ॥ (६३) |

वात्तिक तिलक । "और तुमने जल माँगा सो मैंने इसलिये नहीं दिया कि अब जल से कुछ प्रयोजन मत रक्खो, ब्रजभूमि में विराजमान हो, ब्रजवासियों के घर घर में जाकर दूध ही पिया करो।" प्रभु की ऐसी श्राज्ञा सुन स्वप्न ही में आपने विनय किया कि "ये ब्रजवासी सब अतिप्रेम से दूध ही की उपासना करते हैं। (अर्थात् यशोदाजी ने दूध के हेतु आपही को गोद से उतार दिया था)॥