पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८०१

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ran + +ra ७८२ श्रीभक्तमाल सटीक। धन्य हैं, जिनने, भली विधि से श्रीभागवत कथन करने के लिये, प्रापको अद्वितीय उत्पन्न किया । क्योंकि आगम, निगम (वेद), पुराण, शात्रों का सारांश देखे हुए, बृहस्पति,शुक्र, सनकादिक, व्यासदेव, नारदजी के समान आप थे। आपकी कथा में भगवद्भक्तों की भीड़ लग जाती थी, और प्रेमाभक्ति में प्रवीण सुधा बोध मुख अर्थात् निज मुख वचन से अमृत सम सुखस्वाद सुबोध देनेवाले हुए। आपकी कथा का जसरूपी वितान, गंगाजी के जस के समान, जगत् में छा गया॥ दो०-"नाम "नरायन मिश्रजी," "नवला वस” सुहात । कोटि जन्म के तम हरें, घातपलौ विख्यात" ॥ १॥ महानुभाव लोग कहते हैं कि आपको श्रीशुकदेवजी ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर श्रीमद्भागवत समझने का आशीर्वाद दिया था। (१६८) श्रीराघवदासजी। (६५६) छप्पय । (१८७) कलिकाल कठिन जग जीति यों, राघौ की पूरी परी॥काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ की लहर न लागी। सूरज ज्यों जलग्रहै, बहुरि ताही ज्यौं त्यागी॥ सुन्दर शील सुभाव, सदा संतन सेवाव्रत । गुरु धर्म निकख निर्बह्यो, विश्व में विदित बड़ी भृत ॥ अल्हराम रावल कृपा, आदि अंत धुकती धरी । कलिकाल कठिन जग जीति यों, राघौ की पूरी परी ॥ १३५ ॥ (७६) वात्तिक तिलक । श्रीराघवदासजी ने जगत् में कठिन कलिकाल को जीत लिया, आपकी भक्ति साधुता पूरी पूरी निवहि गई। काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ इन सब अग्नियों की लहर आपको नहीं लगी, जैसे सूर्य अपनी किरणों से जल को सोख लेते हैं, और समय पर वर्पते हैं, ऐसे