पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७१६

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HINGH-we - win- +-+-+ -- +- +nimunwar भक्तिसुधास्वाद तिलक। निधि, रसिक सु प्रभुहित रँगमगे ॥११०॥ (१०४) वात्तिक तिलक। श्रीनन्ददासजी अानन्दनिधि रसिक प्रभु के प्रेम में मिले हुए थे, श्रीयुगललीला रसरीति पद ग्रन्थ की रचना में बड़े प्रवीण हुए, तथा भक्तिरसयुक्त सरस उक्ति युक्ति कथन और गान में अति उजागर थे। पाप "श्रीरामपुर" ग्राम के निवासी थे, समुदपर्यंत आपका सुयश विख्यात हुआ और सम्पूर्ण सुन्दर कुलवाले ब्राह्मणों में उत्तम ब्राह्मण होते हुए भी श्रीभगवद्भक्तों के चरणरेणु की उपासना सेवा करते थे। __ श्रीचन्द्रहासजी के बड़े भ्राता श्रीनन्ददासजी अति सुहृद परम प्रेमरूपी जल में मीन के समान पगे रहते थे। आप श्रीकृष्णयश काव्यवाले अष्टछाप (पाठ प्रसिद्धों) में एक थे श्रापके ग्रन्थ, “पंचाध्यायी, रुक्मिणीमंगल, नाममाला, अनेकार्थ, दानलीला, मानलीला" श्रादिक प्रसिद्ध हैं । सुनते है कि "अष्टछाप" मे ये है- १सूरदास (५ चतुर्भुजदास २ कृष्णदास ६ चेत स्वामी ३ परमानन्द ७ नन्ददास ४ खिन्नदास चेत स्वामी ८ गोविन्द स्वामी चारों चेले स्वामी वल्लमा- चारों चेले गोस्वामी विट्ठलजी के चार्यजी के (१४५) श्रीजनगोपालजी। (५६६) छप्पय । (२७७) - संसार सकल व्यापक भई, जकरी जन गोपाल "नाममाला" तथा "बनेकार्थ" देखने और अवश्य कण्ठस्थ करने योग्य है।