पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६३५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 +4 ++A + ++and ++ ++++ श्रीभक्तमाल सटीक । तथा गान वाजा की अपार माधुरी सुन, आप वेसुध हो गए। उसी में श्रीगुरु हरिदासजी की और श्रीयुगलसर्कार की दिव्य झाँकी पाके श्रीविठ्ठल विपुलजी स्ससागर में मग्न हो, पाँचभौतिक तन तजके दिव्य शरीर पा, परमधाम को पहुँच गए, प्रेम इसका नाम है । प्रेमाभक्ति की जय ।। (११८)श्रीजगन्नाथ थानेश्वरीजी। (४७२) टीका । कवित्त । ( ३७१) महाप्रभु पारपद थानेश्वरी जगन्नाथ, नाथ को प्रकास घर दिना तीन देख्यो है । भए सिष्य, जान भाप नाम कृष्णदास धरचो, कृष्णज कहत सवे श्रादर विसेख्यो है । सेवा 'मनमोहनजुकूम में जनाइ दई, वाहर निकास, करी लाड़, उर लेख्यो है। सुत रधु. नाथज को, स्वप्न में श्लोक दान, दयाकै निदान, पुत्र दियो, प्रेम पख्या है ॥३७८॥ ( २५१) वात्तिक तिलक ! "महाप्रभु श्रीकृष्णचैतन्यजी" के पार्षद “थानेश्वरी श्रीजगन्नाथजी" प्रथम अपने गृह में थे, पूर्वजन्मसंस्कार भाग्योदय अर्थात् श्रीहरिकृपा से गृह ही में प्राणनाथ भगवान का प्रकाशमान रूप तीन दिवस देखा अति ज्ञानानन्द को प्राप्त हुए। चौपाई। 'मम दर्शन फल परम अनूपा । जीव पाव निज सहज स्वरूपा ॥ तब थाके महाप्रभुजी के शिष्य हुए। आपने इनका "कृष्ण- दास" नाम रक्खा, सब लोग अति आदर से "कृष्णजी" ही कहते थे। स्वप्न में "श्रीमनमोहनजी" ने कहा कि "हम अमुक कूप में हैं निकालकर पधरानो और सेवा करो।" बड़े प्रेम से वैसा ही किया । भापके पुत्र (रघुनाथदास) विद्याहीन अपढ़ थे । एक समय आप इस चिन्ता में थे, स्वप में कृपानिधि सकार ने आपको एक