पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६२

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४५ T- MAIMIMM ERA-NAMROHAMMADAMundu-4-HAM भक्तिसुधास्वाद तिलक । सो उसी अवस्था में, (होनहार विवे के चिकने चिकने पात) आपने उत्तर कुछ विलक्षण सा दिया, कि "महाराज 1 अक्तक तो यह दीन अपने को असहाय ही समझे था परन्तु श्रापका कृपापूर्वक पूछना ही मुझे सुधि दिलाता है कि मेरा और तो माता पिता संगी सहायक कोई नहीं है, पर जो सब जगत् का माता पिता साथी और सहायक है, सोई अनाथ नाथ मेरा भी संगी सहायक और माता पिता है।" दोनों महात्मा सिद्ध तो थे ही, बड़े भाई श्रीकोल्हदेवजी ने अपने कमण्डल से कृपारूपी जल के छींटे ज्यों ही उनकी आँखों पर दिये. उसी क्षण उनकी आँखें खुलही तो गई। दोनों महानुभावों की जोड़ी का दर्शन पाकर उनके नेत्रों में प्रेमाश्रु भर पाए । अब इस विषय में (अर्थात् श्रीनाभाजी के जन्म,जाति तथा नाम की वार्ता) कुछ और भी निवेदन किया जाता है। स्वामी श्रीनामाजी का नाम “नमभूज” है, आप अयोनिज पुरुष हैं, आपकी जाति तो कोई नहीं, श्राप श्रीहनुमत-स्वेद से हैं, अतएव हनुमानवंशी प्रसिद्ध हैं। ___ "श्रीसूर्य भगवान से विद्या पढ़ने के अनन्तर जिस समय श्रीअंजनी- नन्दन पवनतनय श्रीहनुमानजी श्रीशिवजी के समीप योग सीख रहे थे, उस समय विचार के परिश्रम से जो स्वेद (पसीना)श्रीमारुति भगवान् के अङ्ग से निकला, उसको भक्तिरत्न के कोषाध्यक्ष त्रिकालज्ञ जगद्गुरु श्रीशिवजी ने एक पात्र में रख लिया। कालान्तर में श्रीभगवद्भक्ति के विवर्द्धन के निमित्त उसी को नभ से भू में निक्षेप किया, इसी से इनका नाम "नभभूज" हुआ कि जो "नाभाजी' के नाम से प्रसिद्ध है। हनुमानवंशी इसी से कहलाए । अयोनिज पुरुष की जाति कोई नहीं। वह पसीना (स्वेद) उस समय का था कि जब आप नेत्रों को बन्द किये हुए योग की पराकाष्ठा दशा (समाधि) में थे, अतएव श्रीनाभाजी भी बाह्यनयनों से हीन (परन्तु अन्तःकरण की दिव्य दृष्टि से अनुपम रहस्य के देखने वाले ही) हुए ॥"