पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६०७

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MAHAMAN- श्रीभक्तमाल सटीक। खेला करता और उस कारण वह बहुत मुँहलगा हो गया था। उसने एक वैरागी साधु की भूमि छिनवा दी। सन्त ने गजसभा में जाकर पुकारा, परन्तु उस विमुख (संन्यासी) के वश में होकर राना ने इन्हें झिड़की के साथ निकलवा दिया, सच्चे पुकार को झूठा समझा ॥ वैरागी सन्त ने आकर श्रीहरिरामजी से अपना सब वृत्तान्त निवेदन किया। आप इन्हें भाई जानकर अथवा यह बात मनभाई मान रीति प्रीति कर, बोले कि “चलो।" आप उनको लेकर राना के दर्वार में जा बैठे, पर राना तनक भी अपने मन में यह बात न लाया कि हरिजन आए है । तब आपने उस राना को फटकारा, और हिरण्यकशिपु की दशा सुनाकर उसे समझा दिया कि सन्त का अपराध करने का परिणाम कैसा होता है । राना ने साधु की भूमि फेर दी। वे परस्पर मुदित हुए। (१०६) श्रीकमलाकरभट्टजी। (४४१) छप्पय । (४०२) "कमलाकरभटं" जगत में, तत्त्वबाद रोपी धुजा। पंडित कला प्रबीन अधिक आदर दे आरज । संप्रदाय सिरक्षत्र, द्वितीय मनों "मध्वाचारज"जेतिक हरि अव तार, सवै पूरन करि जानै। परिपाटी "ध्वजबिजै” सदृश भागात बखानै॥ श्रुति, स्मृति, संमत पुरान तप्तमुद्राधारी भुजा । "कमलाकरभट" जगत में, तत्वबाद रोपी धुजा॥८६॥ (१२८.) वात्तिक तिलक। पण्डित श्रीकमलाकरभट्टजी ने जगत में तत्त्ववाद की ध्वजा फहरायी थी। कला प्रवीण थे, और आर्य (श्रेष्ठ) लोगों का बड़ा आदर मान किया करते । “श्रीमाध्वसम्प्रदाय” के सीस के बत्र