पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५९८

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- - - भक्तिसुधास्वाद तिलक । वात्तिक तिलक । फिसलके कुओं में गिर पड़े, शरीर छूट गया, दिव्य नवीन देह पाई। लोगों ने अकालमृत्यु की आशंका की। रसिकजनों के मन में दुःख हुआ। सो जानकर श्रीनाथ सुजानशिरोमणि ने दिखा दिया कि आप दिव्य ग्वालशरीर धरे गोवर्द्धन पर्वत की जड़ में यह कहते चले जा रहे हैं कि "बलवीर भागे गए हैं उनके पीछे जाता हूँ, गुसाइजी से मेरा प्रणाम कह देना। और अमुक ठिकाने इतना धन है, साधुसेवा में लगा देखें।" खोदा गया तो वह द्रव्य मिला, सबको विश्वास आया,शंकारूपी पंक धुल गया, सबका मन प्रसन्न हुया॥ (१००) श्रीगोकुलनाथजी। गुसाई गोकुलनाथजी (श्री १०८ वल्लभाचार्यजी के पोते, श्री- विट्ठलनाथ के पुत्र) के पास एक धनी ने लाखों रुपए मेंट देने के लिये लाकर विनय किया कि “मुझे शिष्य कीजिये।" आपने उससे पूछा कि "किसी वस्तु में तुम्हारी विशेष प्रीति आशक्ति है ?” उसने उत्तर दिया कि "किसी में नहीं।" आपने कहा कि “जब तुममें प्रीति का बीज ही नहीं, तो मैं तुम्हें शिष्य नहीं कर सकता, यदि किसी में प्रेम होता तो उसे मोड़कर श्रीशोभाधाम के चरणों में लगा दिया जाता ॥" "कान्हा" नाम एक भंगी मन्दिर के बाहर झाड़ लगाया करता और सामने से "श्रीनाथ” जी का दर्शन कर प्रेम में मग्न हुआ करता था ॥ सबकी दृष्टि वालक (ठाकुरजी) पर न पड़े इसलिये आपने एक भीत (दीवार) खिंचवा दी । दर्शन न पाने से कान्हा विकल हुआ । श्रीठाकुरजी ने उसे तीन रात वरावर स्वप्न में यात्रा की कि “गोकुल- नाथ से कह कि यह भीत गिरवा दें।” कान्हाजी आपसे तो विनय नहीं कर सके पर किसी से कह दिया । तब गोसाइजी ने उससे पूछा, उसने सब वार्ता कही । आप प्रेम में डूबे, कान्हाजी को