पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५८

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... भक्तिसुधास्वाद तिलक । ............ . . . andutner-I . . भक्तिसुधास्वाद तिलक । सुयश वर्णन कर, भवसिंधु से पार होने के अर्थ अमाघ महानोका दूसरा कोई नहीं है। (१४) माज्ञा समय की टीका । कवित्त । (८२६) . "मानसी स्वरूप में लगे हैं अग्रदास जू वे, करत बयार नाभा मधुर सँभार सों। चढ्यो हो जहाज पै जु शिष्य एक, श्रापदा में करवा ध्यान, खिच्यो मन, छुट्यो रूपसार सों। कहत समर्थ "गयो बोहित बहुत दूरि श्राओ छवि पूरि, फिर ढरी ताही ढार सों॥"लोचन उघारिक निहारि, कह्यो “बोल्यो कौन ?” “वही जौन पाल्यो सीथ दै दै सुकुँवार सों ॥३०॥ (६१६) तिलक । एक समय स्वामी श्री ६ अग्रदास महाराज जी मानसी भावना में मग्न थे, और श्रीनाभाजी महाराज आप को प्रेम से धीरे धीरे पंखा झल रहे थे। उसी समय आप के शिष्य ने, कि जो सागर (समुद्र) में एक जहाज पर चढ़ा श, जहाज के रुक जाने से प्रार्गवश स्वामी श्री ६ अग्रदेव महाराजजी का ध्यान किया। एक तो स्मरण, दूसरे दीनता से, फिर क्या था, उक्त स्वामीजी कृषालु के मन को सार स्वरूप की सेवा से, छुड़ा के अपनी ओर आकर्षण कर ही तो लिया । समर्थ श्री नाभाजी अपने स्वामी के अनुपम रहस्य सेवा का यों विघ्न सह न सके, कशापूर्वक उसी पंखे के वायुबल से जहाज को उस आपदा से छुड़ाकर, विनय किया कि “प्रभो ! वह बोहित (जहाज) तो आपकी कृपा ही से आपदा से बचकर बहुत दूर निकल गया, अब आप अपने चित्त को उधर से लौटाय के शान्तिपूर्वक स्वकार्य में तत्सर करके पुनः उसी अनुपम छवि में लगाइये।" इस वातों के सुनते ही नेत्र उघार उनकी ओर निहार आपने पूंछा कि “कौन बोला?" श्रीनाभाजी ने हाथ जोड़ के प्रार्थना की कि "नाथ ! वही शरणागत बालक, कि जिसको सीथ प्रसाद देदे के आपने कृपापूर्वक पाला है।" (१५) टीका । कवित्त । (८२८) भचरज दयो नयो यहां लौं प्रवेश भयो, मन सुख छयो, जान्यो