४० श्रीभक्तमाल सटीक । कल्याण के निमित्त अपनी कृपा से चार रूप हुए हैं, क्योंकि भक्तों के अन्तर्यामी तथा उत्प्रेरक भाप ही हैं, उपाय रूपा भक्ति भी मापही की साक्षात् कृपाशक्ति है, हितोपदेशक इष्टमन्त्र गर्मित श्रीगुरु तो भगवद्प प्रसिद्ध ही हैं । इस प्रकार से तत्त्वतः चारों एक हैं। "श्रीमान भवानी" नाम की छोटी सी पुस्तिका (छंदबद्ध) प्रोफसर लाला भगवानदीनजी "दीन" की रची देखने योग्य अवश्य है ॥ (११)॥दोहा (८३२) मंगलआदि विचारिरह, बस्तुन और अनूप हरि- जन को यश गावते, हरिजन मंगलरूप ॥२॥ (२१२) (१२) सब सन्तन निर्णय कियो, * श्रुति पुराण इतिहास । भजिबे को दोई सुघर, कै हरि, कै हरि- दास ॥३॥ (२११) तिलक। मंगलाचरणों तथा मंगल वस्तुओं में विचारने से भगवत् भक्तों का गुण वर्णन ही अनूप अँचता है, इसके सरीखा मंगल मूल और कुछ भी नहीं ठहरता । भगवत् तथा महात्माओं के सुयश को गाते गाते ही, भगवत् के जन मंगलमय हो जाया करते हैं ॥ सब वेदों पुराणों इतिहासों ने तथा सब सन्तोंने यह बात पक्की ठहरा रक्खी है कि भजे जाने के योग्य दो ही हैं (१) भगवान तथा (२) भगवान के साधु तथा भक्त, सो इन दोनों ही की सेवा वा भजन, उत्तम ठीक और सुन्दर है। (१३)॥दोहा॥ (८३०) अग्रदेव आज्ञा दई, भक्तन को यश गाउ। भवसागर के तरन कौ, नाहिन और उपाउ ॥४॥ (२१०) तिलक। . स्वामी श्री ६ अप्रदेव महाराजजी ने आना दी कि भागवतों के
- प्रकट हो कि "अशुद्ध" प्रतियो में ऐसा पाठ है कि सब सन्तनमिलि निर्णय कियो, मथि
श्रुति पुराण इतिहास | इत्यादि । मिलि और मथि अधिक हैं ।।।