पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५६९

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५५० marneg. nu4MMINGHBANDr . 4.ongting+14-14 श्रीभक्तमान सटीक । इससे इन सब पदार्थों की क्षुधा ही नहीं है ।” स्वामी ने प्रार्थना कर पूछा कि "उन भक्तजी का क्या नाम है कहाँ हैं ?" प्रभु ने बताया, तव लोग दौड़के श्रीमाधवदासजी को ढूँढ लाये। आप आये चनों को पाने पवाने का वृत्तान्त कहा । विहारीजी के यहाँ के महंत हँसके कहने लगे कि “श्राप तो उदासीन विरक्त हैं, चने ही लेके चल दिये । सो जगत् से उदासीन होना तो भला है परंतु रसिकराज विहारीलाल से और उनके प्रसाद से उदासीन होना उचित नहीं ॥" (३९६) टीका । कवित्त । (४४७) गये ब्रज देखिबे कों, “भांडीर" में "खेम” रहे निसि को दुराय खाय क्रिमि लै दिखाये हैं । लीला सुनिबे को "हरियाने” गाँव रहे जाय गोबर हूँ पाथि पुनि नीलाचल धाये हैं। घर हूँ को आये सुत सुखी सुनि माता बानी, मारग में स्वप्न दे के बनिक मिलाये हैं। याही विधि नाना भाँति चरित अपार जानो, जिते कछु जाने तिते गानकै सुनाये हैं ॥३२६॥ (३०३) वात्तिक तिलक । किसी और दिन आप वहाँ से ब्रज के सब स्थलों को देखने गये भांडीर वट में आये, वहाँ एक "खेमदास" नामक बैरागी रहता था वह प्रथम तो आपको अपनी कुटी में रहने ही न देता था, परन्तु भाप रहे सो पापको तो उसने कुछ रूखा सूखा सा प्रसाद पवा दिया, और आप रात्रि में छिपके खीर खाने लगा। श्रीमाधवजी ने उसका कपट जाना इससे दिखा दिया कि वह संपूर्ण खीर के चावल कीड़े होकर रंगते थे। तब तो वह दीन तथा विकल होकर आपके चरणों में आ गिरा । आपने बहुत प्रकार से सदुपदेश देकर उसको संत-सेवा में प्रवृत्त किया। फिर श्रीवृन्दावन से चले “हरियाने" में "गोली” नामक ग्राम में भगवदलीला भागवत् कथा बहुत अच्छे प्रकार से होती थी। वहाँ रहके कथा सुनने लगे। आप ऐसे निरभिमान थे कि वहाँ का गोवर