पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५१६

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4-Jan -MAHIMAHI1Imar rana MAM M IGunaraaNAMEnymtathmanduanuawent भक्तिसुधास्वाद तिलक। ४९७ को दी कि “यही गले में पहन पहन लो, और भूषण वसन उतार डालो, जो यहाँ रहना नहीं भाता है तो इसी वेष से चलना पड़ेगा।” यह तो किसी से नहीं हो सका, सबों ने रो दिया, परन्तु “सीतासहचरी" नाम सबसे छोटी रानी, जो भक्तिवती सुन्दरी सुकुमारी और बड़ी सुशीला थी, शीघ्र उठ खड़ी हुई, और अपने सिंगार श्रामस्न इत्यादि उतार, लाज तज, कंवल की मेखला (अलफी) गाती पहन, हाथ जोड़, समाज में आ मिली । पीपाजी ने कहा कि “यह भी उतार फेंको" सीता-सहचरी ने ऐसा ही किया। भगवान रामानन्दजी को इस पर बड़ी ही दया आई, पर पीपाजी को बी का साथ लेना नहीं भला लगता था। (३४८) टीका । कवित्त । (४९५) जौ पै यापै कृपा करी, दीजे काहू संग करि, मेरे नहीं रंग यामैं, कही बार बार है । सौंह को दिवाय दई, लई तब कर धरि, चले ढारि, विप्र एक छोड़ें न विकार है ॥ खायौ विष, ज्यायौ, पुनि फेरि के पठायो सब, भायौ यो समाज द्वारावती सुखसार है । रहे कोऊ दिन, आज्ञा माँगी इन रहिवे की, कूरे सिंधु माँझ, चाह उपजी अपार है ॥२८७॥ (३४२) वात्तिक तिलक। श्रीगुरुभगवान से पीपाजी ने पुनः पुनः प्रार्थना की कि "मुझको इसका साथ ले चलना नहीं भाता है, यदि भापको इस पर इतनी करुणा है तो किसी और कृपापात्र के साथ कर दीजिये।" पर स्वामीजी महाराज ने शपथ दिया, तब पीपाजी ने सीतासहचरीजी का हाथ थाम लिया। श्रीसीतारामकृपा से समाज ने प्रस्थान किया। रानियाँ दूसरा रंग लाई, एक ब्राह्मण को (जो पुरोहित से कुछ सम्बन्ध रखता था, कहते हैं कि उन्नीस सौ रुपए देने की प्रतिज्ञा कर) कहा कि “किसी भाँति राजा को रोको।" वह ब्राह्मण हलाहल

  • "मेखला" कटि-भूपण, करधनी ॥