पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५१२

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-- -- -- - - -Int- +- -+ M S.1000MH-14 -.. M भक्तिसुधास्वाद तिलक । श्रीभवानीजी ने प्रत्यक्ष रूप घर के बताया कि “श्रीहरि की शरणागति को दृढ़ घरो श्रीरामानन्दजी को गुरु करो ॥ श्रीस्वामीजी के चरण प्रताप से श्राप भक्तिभाव की सीमा तथा असंख्य अनूप गुणों के समूह हुए । सन्तों को बड़े ही विनय बल से अपने यहाँ अटका के पूजा सेवा किया करते थे। श्री १०८ पीपाजी की प्रणाली अति सरस निकली, सारे संसार के मंगल का कारण हुई । आपके प्रताप की वासना जगद्विख्यात हुई कि ऐसे भारी हिंसक पशु (नाहर) को भी चेताया और उसको उपदेश लगा॥ (३४३) टीका । कवित्त । (५००) "गागरोन" गढ़ बढ़ पीपा नाम राजा भयो, लयो पन देवी सेवा, रंग चढ़यौ भारियै । प्राये पुर साधु, सीधो दियो, जोई सोई लियो, कियो मन माँझ प्रभु ! बुद्धि फेरि डारिय' । सोयो निशि, रोयो देखि सुपनो बेहाल अति, प्रेत विकराल देह धरिक पछारियै । अब न सुहाय कछू, वहूँ पाय परि गई, नई रीति भई, वाहि भक्ति लागी प्यारिये ॥ २८२॥ (३४७) बात्तिक तिलक। गागरोन नाम नगर में एक बड़ा गढ़ और “पीपा” नाम वहाँ का राजा था, देवीजी की पूजा का उसका पन था और उसमें वह भारी प्रेम रखता था। कहते हैं कि चालिस मन भोग प्रतिदिन चढ़ाता था। शुभ गुणों से राजा सम्पन्न था एक दिन अकस्मात् कई मूर्ति संत इस बड़भागी राजा की पुरी की ओर था निकले। जव साधु आये तब राजा ने उनके निकट रसोई की सीधा सामग्री पहुँचवा दी। राजा का भाग धन्य और धन धान्य । साधु महात्मा तो (जिनके प्रभुही धन हैं) नित्य पूरण काम सदा कृतास्थरूप होते ही हैं, राजा ने श्राटा दाल चावल जल दल फूल फल, जेन केन विधि, जो ही कुछ दिया सोही वड़ी प्रशंसा और सन्तुष्टता पूर्वक संतों ने अंगीकार किया। श्रीकानीजी और श्रीद्वारावती (द्वारकापुरी ) के बीच ।