पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५०८

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. . ...... . arjat.. भक्तिसुधास्वाद तिलक । वात्तिक तिलक। वादशाह ने आपको लोहे की सांकर में बांधकर श्रीगंगाजी में छोड़वा दिया, पर श्रीकृपा से सांकर टूट गई और आप तीर पर खड़े देखने में आये, बादशाह ने कहा कि “इसको, जंत्र मंत्र आता है," फिर लकड़ियों में भाग लगवाकर आपको उसमें छोड़वा दिया, परन्तु इसमें से भी आप ऐसे ( तेजस्वी) निकले जैसे भाग में से सोना । "काजी" के सब उपाय निष्फल हुए परन्तु श्रीकवीरजी बादशाह के आगे नहीं ही झुके । तब मतवाला हाथी लाकर उनके सामने छोड़ दिया, हाथी आपके पास नहीं आया, वरन् चिघर चिघर करके भाग गया, क्योंकि हाथी के आगे श्राप सिंहरूप बैठे देख पड़े। (सिकंदर लोदी का राज्य सं० १५४५ से १५७४ तक) (३३९) टीका । कवित्त । (५०४) देख्यो बादशाह भाव, कूदि परे गहे पाँव, देखि करामात, मात भये सब लोग हैं । “प्रभु पै बचाय लीजै, हमैं न गजब कीजे, दीजै जोई चाहो गाँव देस नाना भोग हैं ॥ “चाहैं एक राम, जाकी जपैं बाठो जाम, और दाम सों न काम, जामैं भरे कोटि रोग है।" आये घर जीति, साधु मिले करि प्रीति, जिन्हें हरि की प्रतीति वेई गायबे के जोग हैं ॥२७६॥ (३५०) बात्तिक तिलक । सब लोग हार गए । 'बादशाह' ने प्रभाव देखकर, आपके चरणों पर शिर नवाय, विनय किया कि "मुझे जगकर्ता की अप- सन्नता तथा क्रोधानल से बचा लीजिये, आप जो चाह नगर, प्रदेश, सामग्री सो सब लें।" आपने उत्तर दिया कि “धन धान्य द्रव्य में कलि अब्द ४५०९ संवत् १५४५ मे सिकन्दर लोदी बादशाह हुआ और २९ वर्प राज्य कर १५७४ विक्रमी में मर गया बोध होता है कि कावीरजी का परिचय इसी जमाने की बात है लगभग १५४० बा १५४९ ॥ "उठेला गड़ा की लहरीटेला जंजीर । प्रेम भरे राम राम रटेले कवीर ॥ जाके मन न डिगे तन कैसे के डिगे।"