पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५०७

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४८८ HAMR . M . Pram- 44444444 +Hot +++ + श्रीभक्तमाल सटीक । जाय कै पुकारे "जू दुखायो सब गाँव है""ल्यावौ रे! पकर, वाके देखाँ यै मकर फैसो, अकर मिटाऊँ, गाढ़े जकर तनाव है । भानि ठाढ़े किये, “काजी" कहत “सलाम करो," "जानें 'न सलाम, जानें राम," गाढ़े पाँव है ।। २७७॥ (३५२) वात्तिक तिलक । यह प्रभाव देख करके ब्राह्मणों के हृदय में पुनः मत्सर उत्पन्न हुधा, वे सब काशीराज को भी श्रीकबीरजी के वश में जानकर, 'बादशाह सिकंदर लोदी के पास, जो आगरे से काशीजी, आया था, पहुँचे । श्रीकबीरजी की मा को भी मिलाके साथ में लेके मुसल- मानों सहित बादशाह की कचहरी में जाकर उन सबने पुकारा कि "कबीर नगर भर में उपद्रव मचा रहा है ।" बादशाह ने धाज्ञा दी कि उसको पकड़ लावो मैं उसका मकर देखे, गाढ़े सिकडी में डाल- के उसया अकड़ मिटाऊँ । आप बादशाह के पास लाये गए, "काजी" ने कहा कि "सखाम करो।" आपने उत्तर दिया कि "मैं श्रीरामजी को छोड़ और दूसरे किसी को सीस नवाना नहीं जानता हूँ। (कवित्त) "विमुखन मुख निंदा मुनिके सिकंदर ने पकरि मँगाये आप पाये ताहि ठाम है । कही काजी पाजी सुनो ये महा मिजाजी करो सिर को झुकाय बादशाह को सलाम है ॥ बोले श्रीकबीर रस राम कहें धीर उर ध्याय रघुबीर जन पीर हारी नाम है । जानी न सलाम कहौं साँच मैं कलाम बात दूसरी हराम जग जानी एक राम है।" (३३८) टीका । कवित्त । (५०५) । बाँधि के जंजीर गंगा नीर माँझ बोरि दिये, जिये तीर ठाड़े, कहै "जंत्र मंत्र आवहीं" । लकरीन माँझ डारि अगिनि प्रजारि दई, नई मानो भई देह, कंचन लजावही ॥ विफल उपाय भये, तऊ नहीं आय नये, तब मतवारो हाथी आनि के झुकावही । श्रावत न दिगो चिधारि हारि भाजि जाय, आप आगे सिंह रूप बैठे सो भगावही ॥ २७८ ॥ (३५१)