पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४९४

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HIRMIR14tang-in- HOMEMBIRHMAHINDRA भक्तिसुधास्वाद तिलक । भगवत् पर न्यवछावर करते हैं यदि आपको यह पत्थर छोड़ ही जाना है तो ठाकुरजी के छप्पर में कहीं खोंस जाइये जर पाइयेगा पहिचान के ले लीजियेगा।" (३२२) टीका । कवित्त । (५२१) . पाये फिरि श्याम, मास तेरह बितीत भये, प्रीति करि बोले “कहाँ

पारस की रीति की।" "वाहि ठौर लीजै मरो मन न पतीजे अब

चाही सोइ कीजै मैं तो पावत हौं भीति कौ ॥” लेके उठि गये, नये कौतुक सो सुनो, पावें सेवत मुहर पाँच नितही प्रतीति कौं। सेवह करत डर लाग्यो, निसि कह्यो हार "बोड़ो पर धापनी, औ राखौ मेरी प्रीति कौं” ॥ २६३ ।। (३६६) वात्तिक तिलक । भगवत् पारस को सामने छप्पर में खोंस के चले गये, और तेरह महीने व्यतीत होने पर फिर उसी भागवत वेष में आकर दरशन दे पूछा कि “पारस के व्यवहार का समाचार बताइये," श्राप दण्डवत् सत्कार करके बोले कि "वह उसी ठेकाने होगा जहाँ आपने रखा था, देखभाल के अपना ले लीजिये, मेरी परीक्षा न कीजिये, मेरे मन को तो उससे प्रतीति नहीं होती है, मैं उससे डरता हूँ, आप उसको जो चाहिये सो कीजिये ॥" साधु देवता उस पत्थर को लेकर चले गये। अब नया कौतुक सुनिये कि ठाकुर का आसन मारने के समय आप नित्य पाँच स्वर्ण मुद्रा पाने लगे, तब सेवा पूजा से भी डरे, तब रात को श्रीसरकारने स्वप्न में आज्ञा की कि “अपना हठ (अर) छोड़ो और मेरी बात रक्खो ।” (३२३) टीका । कवित्त । (५२०) मानि लई बात, नई ठौर लै बनाय चाय संतनि वसाय, हरि मंदिर चिनायो है। विविध वितान तान, गनो जो प्रमान होई, भोई गई, भक्ति पुरी जग जस गायो है । दरसन आ4 लोग, नाना विधि राग भोग, रोग भयो विपनि काँ तन सब छायो है। बड़ेई