पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४९१

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४७२ श्रीभक्तमाल सटीक । दो० "रामचन्द्र के भजन विनु, 'बढ़ो कहावै सोय । जैसो दीपक बुझन' कहँ, बढ़ो कहैं सब कोय ॥" __एक दिन पानी बहुत बरसता था इसी से श्रीगुरु बाबा को चित्त पर न रखके प्रालस वश निकटस्थ उस बनिये का ही सीधा ले आए। जब थाल सर्कार के आगे अर्पण हुआ तो भोजन करते हुए भगवत् को स्वामीजी महाराज ने ध्यान में नहीं देखा । अतः इस ब्रह्मचारीजी से पूछा कि "चुटकी कहाँ कहाँ की लाया है ?" उन्होंने कहा कि "अमुक बनिया का सीधा लाया हूँ॥" श्रीमहाराजजी ने पूछताछ कर जाना कि वह बनिया चमार के साथ कारवार रखता है। आपने अपनी आज्ञा दालने और भगवत् के भोग न स्वीकार करने से भारी शाप दिया कि "तूने मेरी बात नहीं सुनी इसलिये जा चमार के यहाँ जन्म ले ॥" श्रीरैदासजी के पूर्वजन्म की वार्ता ऐसी है। इसी से आपने चमार के घर में जन्म लिया। श्रीकृपा से सिंहासन पर विराजे और अपने ब्राह्मण होने की प्रतीति कराई अर्थात् यज्ञोपवीत का चिह्न शरीर में दिखाया ॥ (३१९) टीका । कवित्त । (५२४) _माता दूध प्यावे याको छुयोऊ न भावे सुधि श्रावे सब पाबिली सुसेवा को प्रताप है। गई नभवानी रामानन्द मन जानी बड़ो दण्ड दियो मानी बेगि भाये चल्यो श्राप है । दुखी पिता माता देखि धाय लपटाय पाय कीजिये उपाय कियो शिष्य गयो पाप है । स्तन पान कियो जियो लियो उन्ह ईस जानि निपट अजानि फेरि भूले भयो ताप है ॥ १६०॥ (३६६) वात्तिक तिलक । माता का दूध पीना क्या श्रापको तो स्पर्श भी नहीं अच्छा लगता था, क्योंकि श्रीगुरुसेवा के प्रताप से आपको पिछले जन्म की सारी वार्ता की सुधि बनी थी कि “चमार से व्यवहार रखनेवाले