पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४६२

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amaniran MPA Mentinen tarima - +- - भक्तिसुधास्वाद तिलक । "स्वयं सौर ने ही मार्ग में मुझे विपिन के पार किया," आपने गृह के समस्त भार को तज डाला और निर्बन्द हो श्रीहरि के भजन में लग गए। श्रीभागवत टीका इसके पीछे की॥ चौपाई। "प्रीति कृपा जो सदा निवाही। ऐसे प्रभु तजि भजिये काही ॥' "सिय सियपिय तजि भाजये काही । मोसे पतित पर ममता जाही॥" (२८७) छप्पय । (५५६) भक्तान सँग भगवान नित,ज्यों गऊबच्छ गोहन फिरें। "निहिकिंचिन" इकदास तासु के हरिजन आये। विदित बटोही रूपभये हरिआपलटाये॥साषि देन कौ स्याम "खुरदहा"प्रभुहि पधारे।"रामदास" के सदन राय रन- छोर सिधारे। आयुधछत तन अनुग के बलिबंधन अपु बपु धरै । भक्तानि सँग भगवान नित, ज्यों गऊवच्छ * गोहनं फिर ॥५३॥ (१६१) वात्तिक तिलक । श्रीभगवान् अपने भक्तों के साथ सर्वदा ऐसे फिरा करते हैं कि जैसे वत्स के संग संग गऊ ॥ (१) एक साधुसेवापरायण हरिभक्त "निष्किञ्चन" नाम तिनके घर साधु लोग पाए, भक्तजी की साधुसेवावृत्ति विदित ही थी, तथा यह कथा भी विदित है कि श्रीलक्ष्मीजी सहित स्वयं भगवान ही एक सरावगी साहूकार बटोही के रूप में श्राए, और भक्तजी के हाथों से अपने तई लुटवा डाला। (२) साखी देने के निमित्त श्यामप्रभुजी आपही खुदहा ग्राम में पधारे। (अपने पास बुलवाया नहीं)॥ __(३) श्रीरायरनछोरजी "दारकाजी” से “डाकोर" श्रीरामदासजी के घर कृपा करके श्राए, और पण्डों के हथियार के घाव को भक्त के

  • पाठान्तर "गऊ बच्छ । १ "गोहन" पीछे पीछे साथ साथ ॥