पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४५०

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anton. dr.. H. MAA . A . 44.es भक्तिसुधास्वाद तिलक। ४३१ १ श्रीभुवन चौहानजी ४ राजा श्रीजयमलजी २ श्रीदेवापंडाजी ५ श्रीग्वालभक्तजी ३ श्रीकामध्वजजी । ६ श्रीश्रीधरजी श्रीप्रियादासजी ने आठवें कवित्त मे जो यह लिखा है कि "समभयो न जात मन कम्प भयो चूर है । ऐपै बिना भक्तमाल भक्तिरूप अतिदूर है ।" इस कवित्त में सभी शंका करते है कि इस कवित्त में कथित भक्ति के लक्षणों से पृथक् अब क्या भक्तिरूप रहगया? सो जानना चाहिए कि सदाव्रतीजी की भक्ति और अनूठी प्रतीति तथा सन्तों को विष देनेवाली स्त्रियों की भक्ति इत्यादिक ही वे भक्तियाँ हैं कि जो पूर्वोक्त लक्षणों से दूर है और, श्रीभक्तमाल में वर्णित भक्तों में ही देखी जाती है ।। ( २७६) टीका । कवित्त । ( ५६७ ) सुनो कलिकाल बात, और हैं पुराण ख्यात, "भुवन चौहान"जहाँ "राना" की दुहाई है। पट्टा युगलाख खात, सेवा अभिलाष साधु, चल्यो सो सिकार नृप, संग भीर घाई है । मृगी पीछे परे, करे टूक, हुती गाभिन, यौं आइ गई दया, कही “काहे को लगाई है। कहैं मोकों 'भक्त' क्रिया करौं मैं अभक्तन की, दारु तरवार धरौं” यहै मन भाई है ॥ २२४ ॥ (१०५) वात्तिक तिलक । __ "और पुराणों में ख्यात” तीनों युगों के भक्तों के उदाहरण-- (१) कृतयुग में श्रीध्रुवजी ने कहा कि मैं प्रभु का भजन कर सिंहासन और राजा के गोद में बैलूंगा (२) त्रेता के आदि में प्रसादजी ने कहा कि खंभे में प्रभु हैं (३) द्वापर में भीष्मजी ने कहा कि मैं प्रभु को अन गहाऊँगा, इनकी तथा अनेक की वाणी प्रभु ने सच की (४) कलियुग में श्रीभुवन चौहानजी, इत्यादि ॥ .. (५३) श्रीभुवनजी चौहान। और युगों की कथाएँ तो पुराणों में विदित ही हैं, अब कलिकाल के भक्त की कथा सुनिये---जहाँ चित्तौरगढ़ उदयपुर के राना की दोहाई अर्थात् राज्य है, वहाँ एक भक्त श्रीभुवनसिंहजी चौहान थे। १"चौहान" क्षत्रिय जातिविशेष । २"युगलाख"=दो लाख, २०००००। ३ सिकार"-शिकार, मृगया, आखेट ।