पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४४३

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४२४ श्रीभक्तमाल सटीक। बात की बात में चंगा कुन्दन सा शरीर कर दिया। राजा ने अत्यन्त सुख पाया। आपने राजा से कहके हंसभक्तों को छुड़वा दिया। श्रीकृपा की और वैषणव-वेष की जय ॥ (२६९) टीका । कवित्त । (५७४) "लेवो भूमि गाउँ, बलिजाउँ या दयालता की, भाल भाग ताके जाकों दरसन दीजियें ।" "पायो हमसब, अब करो हरिसाधु-सेवा, मानुष-जनम, ताकी सफलता कीजिये ॥"करी लै निदेस, देस भक्ति बिसतार भयो, हंस हित सार जानि, हिये धरिलीजिये । वधिकनि जानी जासों खगनि प्रतीति कीनी, ऐसो भेष छोड़िये न, राख्यो, मति भीजियै ।। २१८ ॥ (४११) वात्तिक तिलक। राजा अपना नवीन जन्म जान श्रीवैद्यनारायण के चरणों में पड़के प्रार्थना करने लगा कि "भापकी दयालुता की मैं बलिहारी जाऊँ, भापने इंसों के प्राण और मुझको हिंसा से बचाके मुझे चंगा कर दिया, जिसको आप कृपाकर दर्शन दें उसके भाल में बड़े भाग्य लिखे जानना चाहिये, अब मुझपर कृपाकर जितनी इच्छा हो उतनी भूमि वा गाँव लीजिये ।"वैद्यरूपी प्रभु बोले कि "मैं सबकुछ पाचुका, अब मैं यही चाहता हूँ कि तुम भगवान की भक्तिपूजा तथा सन्तों की सेवा कर, अपने मनुष्य जन्म को सफल करो ॥" चौपाई। वैद्यरूपहरि अस कहि बयना । पुनिकह “तोहि यम की अब भयना ।" यह काहके प्रभु अन्तर्धान हो गए। राजा ने आपका उपदेश मान वैसा ही किया कि अपने देश भर में भाक्ति का विस्तार कर दिया || . देखिये, हंसों ने श्रीभागवतवेष का ऐसा आदर किया, तो उसी क्षण प्रभु ने प्रगट होकर हंसों के प्राण बचाए, यश दिया, और भक्तिमुक्ति दी । इस सारांश को अपना हित मानकर सबको अपने हृदय में धारण करना चाहिये कि गुण और सारमाही हंसों ने