पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४३५

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श्रीभक्तमाल सटीक। apmantra -per-PHAN- 10mputiniantet4041 mana- जय-जयकार शब्द के साथ माता पिता आदिक सब अति हर्ष को प्राप्त हुए, और राजा जो इस बालक का पिता था उसके सहित सव भक्ति विमुख लोग तुरत ही साधुओं के पाँवों पर यह विनय करते हुए गिरे कि "हम को अब शरण दीजिये ।" श्रद्धा देख सतों ने उन्हें शिष्य किया। तदनंतर राजा प्रत्यक्ष परचो देख सब सन्तों की इस प्रकार सेवा किया करता कि जिसको देख सबकी मति हर जाती थी॥ __जो श्रीनाभास्वामीजी ने इस छप्पय में "भूपनारि प्रभु राखिपति" लिखा है, सो इस प्रकार प्रभु ने इस भक्ता रानी की लबो प्रतिज्ञा रख ली, उसके सब सज्जन साक्षी हैं । सो जो कदापि और किसी को ऐसी भक्ति की अभिलाषा हो, तो जैसे इसकी इसी घड़ी अभिलाषा पूरी हुई, वैसी ही पूर्ण होगी। लोक में रीति है कि जब तत्काल देख लो तथा परचो से तोष को प्राप्त हो, तो सब जनों की अभिलाषा सन्तों में बढ़ती है। (२६२) छप्पय । (५८१) आशै अगाध हुँहुँ भक्त को, हरितोषन अतिशैकियो। "रङ्गनाथ" को सदन करन बहु बुद्धि बिचारी । कपट-धर्म रचि*जैन-द्रव्य हित देह बिसारी ॥ हंस पकरनें काज बधि बानौं । धरि आए । विलको दाम की सकुच जानि तिन, आप बँधाए॥ सुतबध हरिजन देखि के, दै कन्या,आदर दियो ।आशै + अगाध दुहुँ भक्त को, हरि- तोषन अतिशैकियो ॥५१॥ (१६३) वातिक तिलक । (१२) इन मामा भानजे दोनों भगवद्भक्तों के भाव भक्ति का "रचि"वेप बनाके 11 "बानी"=भगवत देष 11 "तिलक-दाम" अर्ध्वपुण्ड्र और भागवती कण्ठी माला । + 'आशै अगाध"अथाह अभिप्राय ।।