पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४२४

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४०५ state- भक्तिसुधास्वाद तिलक । वात्तिक तिलक । · वह भक्तिवती, जिस गाँव में दूसरा भाई रहता था वहाँ गई कि जहाँ वह अपनी अथाई में बैठा हुआ था। इसने वही बात कही, अर्थात् “मेरे तो जैसे वह भाई तैसे ही तुम, भाई भाई में चाहे जैसी हो पर मुझपर तो श्राप दोनों ही की समान कृपा चाहिये, मैं अपने ठाकुर के बिन मृतक- प्राय हो रही हूँ। मेरी सेवा की मूर्ति देके मुझको प्राणदान दीजिये।" उसने कहा कि "जा, वहाँ सब ठाकुर एक ही ठौर विराजते हैं, अपना पहिचान के ले ले।" यह कन्या बड़ी प्रसन्न हुई, परन्तु उसके भाई के पास बैठे हुए लोगों में से एक विमुख बोल उठा कि "यदि ऐसी ही प्रीति तुम्हारे हृदय में है तो तुम यहीं से अपने भगवान को बुला लो।" उस दुष्ट की ऐसी बात सुन यह विरह से व्याकुल हो गई, आँखें सजल तथा लाल हो आई, छाती फटने लगी, अति भारत दशा में वैसे ही स्वर से इसने अपने “सिलपिल्ले" भगवार को पुकारा, ऐसी विकल होके मानो अभी शरीपात हुआ ही चाहता है। ___ करुणानिधान प्रभु उसकी वह टेर सुनते ही पहुँचकर उस बड़भागिनि अनुरागिनि की छाती में प्रा लपटे॥ . चौपाई। “शुद्धभाव कन्याकर जाना। भारत वचन सुनत भगवाना॥ प्रेमते प्रगट भए जगजाना । इरिव्यापक सर्वत्र समाना॥" "जय जय” की ध्वनि छा गई। उसके सब दुःख भागे, आनन्द से अपने ग्राम में आई यहाँ भी "जय जय" ध्वनि होने लगी । इसके परमानन्द का कहना ही क्या। मृतक- शरीर प्राण जनु मेंटे॥" (२)नृपसुता। (२५१) टीका । कवित्त । (५९२) सुनौ "नृपसुता” वान, भक्ति गात गात पगी, भगी सव विषवृत्ति,