पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४२३

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४०४ श्रीभक्तमाल सटीक । नसुहाय, तव कही "जायल्यावौ तेरे दोऊ समंधीजिये 198811 (220) वात्तिक तिलक। यहाँ तक तो दोनों लड़कियों की एक ही रीति की वार्चा हुई, अब आगे मन लगा के उनके सुचरित्र अलग अलग सुनिये ॥ (१)भूम्यधिकारीसुता (जमींदार की लड़की)। इसके दोनों भाई दो गाँव में रहते थे और उनमें परस्पर अत्यन्त ही विरोध था, वह दूसरा भाई इस पर छापा मार के गाँव और घर को लूट ले गया। सब कुछ गया उसमें उस कन्या की सेवा-पिटारी भी लुट गई। इस लड़की को बड़ा ही क्लेश प्राप्त हुआ, प्राण ही भार हो गए जीवन ही कठिन अप्रिय था तो अन्न-जल कैसे अच्छा लगता ॥ दो “धवल महल, शय्या धवल, धवल शरद ऋतु रेन । __एक राम बिनु व्यर्थ सच, जिमि विनु पुतरी नैन ।" सब लोग समझाते २ हार गए, पर इसको कुछ भी नहीं सुहाता था। तब सबने कहा कि "तुझको तो दोनों भाई समान ही हैं, तू उस भाई के पास जाके स्वभावतः अपनी सेवा की मूर्ति माँग ला॥" दो० "उमा, जे रघुपति चरणरत, विगत काम मद क्रोध । निज-प्रभु-मय देखहि जगत, कासन करहिं विरोध ?" (२५०) टीका । कवित्त (५९३) गई वाही गाँव जहाँ दूसरोजू भाई, रहै बैठयो हो थाई माँझ, कही वही बात है । लेवी जू पिछानि तहँ बैठे एक और प्रभु,” बोलि- उठ्यो कोऊ “वोलि लीजै प्रीति गात है" ॥ भई ऑखि राती, लागी फाटिवे की छाती, सो पुकारी सुर भारत सौं, मानो तन पात है। हिये आइ लागे, सब दुख दूर भागे, कोऊ बड़े भाग जागे, घर आई नै समात है ॥ २०० ॥ (४२६) "सम धीजिये"-तुल्य प्रिय समझिये।२ "अथाई-बैठक । ३ "राती" लाल, अरुण । ४ "सुर आरत"=आरत के वचन का स्वर । ५ "न समात"-प्रहर्ष से फूली नहीं समाती ॥