पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३१९

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३०० श्रीभक्तमाल सटीक। +44-mp-MAHArbadna HIL MAHd- (१७)श्रीश्रीरंगजी। (१५४) टीका । कवित्त । (६८९) योसा एक गाँव तहाँ श्रीरंग सुनाँव हुतो, वनिक सरावगी की कथा लै बखानिये । रहतो गुलाम गयो धर्मराज धाम, उहाँ भयो बड़ो दूत कही "सुनु अरे वानिये ॥ आए वनिजारे लेन देख तू दिखावे चैन, बैल शृङ्ग मध्य पैठि मारे पहिचानिये। विनु हरिभक्ति सब जगत् की यही गति, भयो हरिभक्त श्रीअनन्त पद ध्यानिये ॥११७ ॥ (५१२) वार्तिक तिलक। जयपुर में देवसा' नामक एक ग्राम है, वहाँ प्रथम सरावगी मत के बनिये के घर में जन्म श्रीरंगजी का था, इनके श्रीरामभक्त होने की कथा यों है, कि इनके गृह में एक दहलुा था, वह मर के श्रीधर्मराजजी के लोक में एक बड़ा यमदूत हुथा। . वह एक दिन इसी देवसा गाँव में, यमराज का भेजा आया, और पूर्व परिचय से श्रीरङ्ग के सामने प्रत्यक्ष होके बोला कि "रेपनिया। सुन, तुझे एक कौतुक दिखाता हूँ, देख ये जो वनजारे यहाँ अन्नादिक लेने आये हैं, उनमें से एक का प्राण लेने में आया हूँ, सो उसी के बेल की सींग पर बैठ के अभी अभी उसको मार डालता हूँ, तू देख के समझ लेना और जानना कि श्रीसीतारामजी की भक्ति विना सब नगद के लोगों की इसी प्रकार की नीच मृत्यु होती है। इस घटना को प्रत्यक्ष देख चुकने पर यदि तुझे हरिकृपा से चेत हो आवे तो श्रीअनन्तानन्द स्वामी की शरण लेना।" श्रीरङ्गजी उस ठिकाने उस समय गये और देखा कि वनजारे को उसी के बैल ने अपनी सीगों से, इनके देखते ही देखते, पेट चीर के मार डाला। __ यह घटना देख, इनको वस्तुतः भय तथा ज्ञान वैराग्य हुआ, और अपने कुल के सब अनाचारों को त्याग के श्रीअनन्तानन्द स्वामी के चरण शरण में श्रा, श्रीराममन्त्रादिक पंच संस्कार प्रहण