पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३०४

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । २८५ Animated -tire-1-mus NO- 14.m ira- सुखौ भावां गालँवं च सप्तैते नाम नन्दनाः॥१७॥ कवीरश्च रमादासः सेना पीपी धनास्तथा। पद्मावती १२६ तदद्धं च षडेते च जितेन्द्रियाः ॥ १८ ॥ येषां शिष्यपशिष्यैश्च व्यासा भारतभारती॥" श्री १०८ अग्रस्वामीकृत "रहस्य त्रय" की संस्कृत टीका, ( श्रीकाशी १९३५ की छपी के ये साले चार लोक है ॥ [१] श्रीअनन्तानन्दजी। ["सिद्ध परमप्रेमी रघुनाथा । सियजू हाथ धरे जिन्ह माथा ।" ] [२] श्री १०८ सुरसुरानन्दजी [ "सन्तप्रसाद प्रभाव विद" प्रयमहि पाए स्वाद । सोइ याहू लन सत करी, महिमा महाप्रसाद ।।" } [३] श्रीसुखानन्दजी । [ "आचारज गुरु भक्ति निधाना । निरत मन्त्र मन्त्रार्थ विधाना !" ] [४] प्रीनरहरियानन्दजी। [ "रामभक्त कुल कैरव चन्दा ।" ] [५] श्री ६ पीपाजी। [ "जगत विदित सियरामपद, पीपा प्रेम प्रताप । लगी भागवत भुजन महँ, जिन्ह की लाई छाप " ] [६] श्रीकबीरजी। ["छाके राम नाम रस स्वादा ॥" ] [७ ] श्रीपद्मावतिजी। [८] श्रीभावानन्दजी । ["निरत रामसेवा मतिमाना । गूढ प्रेम विज्ञान निवाना ॥" ] [९] श्रीसेनाजी । [ "सदा सन्तसेवा मति पागी । भक्तियोग युत अति बड़भागी ।।"] [१०] श्रीधनाजी। [ "सुमति सन्तसेवा लयलीना । सदाचार गुरु-भक्त प्रवीना ॥ ] [११] श्रीरदासजी। ["रमादास शासन मति दासी । सदा भागवत धर्म प्रकासी ॥ नि किंचन उदार गुरुसेवी । भाविक रामतत्व को भेवी ॥" 1 [१२] देवी श्रीसुरसरीजी श्रीसुरसुरानन्दजी की स्त्री। ["विषय विगत रघुवर रति सानी। गुरुपद भक्ता तन मन वानी ।। परम पुरुष गुनिराम बिहारी । और सब जग जान्यो नारी " ] [१३] श्रीगालवानन्दजी। ["उपदेशक वेदान्त वित, योगी रतरघुनन्द ।।" ] यह नाम इस छप्पै मे नही है । [१४] श्रीयोगानन्दजी। ["योग निधान निरत रघु राई ।" ] was" श्रीयोगानन्दजी श्रीअनन्तानन्दजी के शिष्य है ।।