पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२९२

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२७३ MEIMAMM4 HALIA . . भक्तिसुधास्वाद तिलक । उनसे करनी" तब श्रीलालाचार्यजी ने कहा कि "स्वामिन् अाज्ञा तो हुई परन्तु कोटि गुनी प्रीतिरीति बनती तो नहीं" तब श्रीगुरुस्वामी ने कहा कि “(ताते) भाई की प्रीति से, सन्तों में न्यून न होने पावे इति ॥" एक चेरै आपने एक मालाधारी मृतक शरीर नदी में बहते हुए पाया। वेष से सन्त जान के उसमें भ्राता तनु का भाव मानके उसे घर ला, विमान पर विठा गाते वजाते फिर उस नदी के तीर ले जाके उसकी दाहक्रिया की। (१४४) टीका । कवित्त । (६९९) कियो सो महोच्छो, ज्ञाति विपन को न्योतो दियो, लियो पाए नाहिं कियो शंका दुःखदाइयें । भए एकठोरे, माया कीनी सव बौरे, कछु कह बात और मरी देह वही आइयें ॥ याते नहीं खात, वाकी जानत न जाति पाँति, वड़ो उतपात घर ल्याइ जाइ दाहिये । मर्ग अवलोकि उत पखो मुनि शोक हिये, जिये आइ पर्छ गुरु कैसेके निवा- हिये । १११॥ ५१८) वात्तिक तिलक। इनने अपने भाई सरीखा उसकी तेरहीं का महोत्सव किया, ब्राह्मणों और अपने जातिवर्ग को नेवता दिया, उन्होंने नेवता तो ले लिया परन्तु श्राए नहीं, क्योंकि इन महात्माजी की दुख देनेवाली शंका उन्होंने की, और जात्यभिमानरूपी मद से बावरे वे सब इकट्ठे होके और की और ही कहने लगे कि “देखो, उस मृतक का शरीर नदी में वह के आया था, उसको घर लाके, घाट पर ले जाके, उसको जलाया, कर्म किया, उसकी जाति पाँति कुछ भी जानते नहीं सो यह बात तो बड़े ही उत्पात की है।" ऐसा गठ के कहा कि "हम सब भोजन नहीं करेंगे।" १"लियो"स्योतो लियो । २"माया कीनी"=दखेडा गठा, झंझट खड़ा किया, फैजाललाया। ३ "कहै वात औरे" दुसरी ही बात कहने लगे। ४ "मगअवलोकि"वाट हेरके, मार्ग देशके, प्रतीक्षा करके । ५ "पूछ गुरु श्रीगुरुजी से पूछू । ६ "कैसे के ?"=किस प्रकार से?॥