पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२८५

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२६६ .... PMMMMMITMaith. 14.1+ HA ...श्रीभक्तमाल सटीक ............ श्रीभक्तमाल सटीक । श्रीहारीत ऋषीश्वर के वंश (गोत्र में,) "श्रीकेशवजन्या" नाम याज्ञिक ब्राह्मण की धर्मपत्नी “श्रीकांतिमती जी के गर्भ से पिंगल ना संवत्सर में मेष संक्रान्ति के पीछे आर्द्रा नक्षत्र में चैत शुक्ल पंचमी गुरुव को अवतीर्ण हुए ।श्रीकेशवजयाजी के गुरु श्री शैलपूरण" जी आपके संस्कार किये कांचीपुरी में पंडित यादव गिरि से १६ (सोलह) की अवस्था में वेदांत पढ़ते थे। उसी अवस्था में उनके पिता का वैकुर वास हुआ। वहाँ के राजा की सुता एक ब्रह्मराक्षस से पीड़ित थी, राजा के बुलाने से यादव पंडित, अपने शिष्य श्री १०८ रामानुजजी समेत वहाँ गया । ब्रह्मराक्षस ने कहा "तुझसे मैं नहीं जाने का, पर यदि तेरे यह शिष्य श्रीरामानुजजी अपना चरणामृत मुझे दें तो मैं अभी इसको छोड़ दूँ"राजा के विनय से श्रीस्वामीजी ने अपना चरणतीर्थ ब्रह्मराक्षस को दिया वह कृतकृत्य हो गया। लड़की सुखी हो गई। इस बात में और "कप्यास” शब्द के अर्थ निरूपण में, तथा अद्वैतमत के खंडन में आपका महा प्रभाव देख, मत्सर से भर, उक्त पण्डित यादव आपका शत्रु वरन आपके प्राण का गाहक हो गया । वह अपने एक निज शिष्य से सम्मति करके, चुपचाप त्रिवेणी में डबा देने के निमित्त, आपको तीर्थ यात्रामिसु श्रीप्रयागजी ले चला। आपके मौसेरे भाई "गोविन्दजी” भी उसी पण्डित से पढ़ते थे, श्रीरामकृपा से इनको उस दुष्ट पण्डित की गुप्त इच्छा जानने में आ गई, इनने आपको सावधान कर दिया । आप मार्ग के एक वन में छुप रहे और श्री "असहायों के परम-रक्षक" जी का स्मरण करने लगे। करुणासिन्धु भक्तवत्सल श्रीलक्ष्मीनारायणजी ने, व्याधा भिल्ल और भिल्लिनी के वेश से आपके पास उस वन में रातभर रह के आपकी रक्षा की और प्रातःकाल आपके हाथों से एक कूप का जल