पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२७३

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२५४. .............. 1- .... IN....- श्रीभक्तमाल सटीक अजितआज्ञा अनुबरती । करकोटकं तक्षक सुभट सेवा सिर धरती ॥आगमोक्त शिवसंहिता "अगर" * एकरस भजन रति । उरग अष्टकुल बारपाल सावधान हरिधाम थिति ॥२७॥ (१७७) वात्तिक तिलक । इन अष्टकुली महासों की श्रीभगवत् के धाम में स्थिति है, श्रीहरिमन्दिर के द्वारपालक हैं, और निज सेवा में सदा सावधान रहते हैं- (१) एलापत्रजी, और (२) अनन्त (शेष) जी, अपने मुखों से श्रीअनन्त (श्रीभगवान) की कमनीय कीर्ति विस्तारपूर्वक सदा वर्णन करते हैं। (३) पद्मजी तथा (४) शंकुजी की प्रतिज्ञा (पन) प्रगट है कि श्रीप्रभु के स्वरूप का ध्यान निज हृदय से क्षणमात्र नहीं टारते हैं (५) अशुकम्वलजी और (६) वासुकीजी श्रीअजित महाराज की आज्ञा के सर्वदा अनुवर्ती रहते हैं । (७) कोंटकजी तथा (5) तक्षकजी ये दोनों सुभट श्रीप्रभु की सेवारूपी भूमि अपने शीश पर निरन्तर धारण किये रहते हैं । स्वामी श्रीअनदेवजी कहते हैं कि यह "शिवसंहितातंत्र (भागम)" में कहा गया है, ये अष्टकुली महानागों की श्रीभगवत् के भजन में सदा एकरस प्रीति (रति) रहती है । "तेषां, प्रधानभूतास्ते शेष, वासुकि, तक्षकाः ॥॥ शंखेंः, श्वेतो, महापद्मः कम्बलाश्वतरौ तथा। ६ श्रीअग्रस्वामी का यह छप्पय मगल बान श्रीनाभाजी ने यहाँ रक्खा है अथवा भक्तमाल के सतयुग त्रेता द्वापर नाम पूर्टि के अन्त मे स्वय श्रीनाभाजी ने ही अपने गुरु श्रीअग्रस्वामी का छाप रक्खा है, अस्तु