पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२१३

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taenasamaMEINNIrammamatarinakamahemamumtartmeenamen श्रीभक्तमाल सटीक। श्रीतीर्थराज प्रयाग में आपका पावन आश्रम आज भी प्रसिद्ध है। (१०२)श्रीदक्षजी। श्रीदक्षजी ने एक पहाड़ पर भजन किया, भगवत् ने प्रसन्न होकर दर्शन दे यह आज्ञा की कि “पहिले गृह में रह के भोगविलास और मजा उत्पत्ति करलो तब मेरे धाम में पाना।" श्रीदक्षजी के, कई बेरे, दश दश सहस्र बेटे हुये और इनने सब को सृष्टि हेतु तप करने के लिये “नारायणसर पर भेजा, परन्तु, "श्रीनारद उपदेशेउ आई । ते पुनि भवन न देखेउ जाई ।" तव, श्रीब्रह्माजी के उपदेश से श्रीदक्षजी ने साठ कन्यायें उत्पन्न की, जिनकी कथा श्रीमद्भागवत में विस्तारपूर्वक है, अस्तु ॥ अन्ततः, श्रीहरिकृपा से श्रीदक्षजी ने परमगति पाई ॥ (१०३।१०४) श्रीपुरुजी।श्रीभूरिषेनजी। 'श्री “पुरु” जी श्रीयदुजी के भाई थे। दोनों बड़े भगवद्भक्त थे॥ (१०५.) श्रीवैवस्वतमनुजी। चौदह मनुओं में एक मनु प्रथम श्रीस्वायम्भुवमनुजी हैं कि जिनकी धर्मपत्नी श्रीसतरूपाजी हैं कि जिनकी कथा लिखी जा चुकी है। शेष तेरह मनु और हैं। (१०६) मनु और मन्वन्तर । अथ चौदहो मनु के नाम- (१) श्रीस्वायम्भुवमनुजी (८) सावर्णि मनु (२) स्वारोचिष मनु K ) दक्षसावर्णि मनु (३) उत्तम मनु (१०) ब्रह्मसावर्णि मनु (४) तामस मनु . 1(११) धर्मसावर्णि मनु (५) खेत मनु (१२) रुद्रसावणि मनु (६)चाक्षुष मनु (१३) देवसावर्णि मनु (७) श्रीवैवस्वत मनु (१४) इन्द्रसावर्णि मनु