पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२०९

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श्रीभक्तमाल सटीक । PANErrr-huggMANTHAN N APandemHeavamtirgugrpreprgmentaran MAHARMAur कि तुम इसी वन में भजन करो । यहीं श्रीसीतानाथ साकेतपति शार्ङ्गधर पायेंगे और कृपाकरके तुमको दर्शन देंगे सो वैसाही हुआ ॥ (६३) (६४) श्रीदेवलजी, श्रीअमूर्तजी। श्रीदेवलजी, जो ब्राह्मण और मौनी थे, और श्रीहरिदास (अमूर्त) जी, ये दोनों बचपन ही से त्यागी बड़भागी और रामानुरागी हुये ।। (६५) श्रीनहुषजी। एक नहुष श्रीसूर्यवंश में हुये हैं और दूसरे नहुष श्रीचन्द्रवंश में। श्रीसूर्यवंशी नहुषजी श्रीअयोध्याजी के राजाथे। जब गौतमजी के शाप से वा ब्रह्महत्या के भय से इन्द्र मशक सरिस लघु होके मानसरोवर के कंजनाल में जा छिपे तब नहुषजी देवतों के राजा इन्द्र के स्थान पर बिठाये गये । वह उस समय अपने यान को मुनियों के कन्धे पर उठवा के इन्द्राणी के पास चलाउन ब्राह्मणों के शाप से सर्प होकर मृत्युलोक में गिरा और एक गिरिकन्दरा में काल बिताने लगा। भाग्यवश श्रीयुधिष्ठिरजी उधर से जा निकले उनके पुण्यप्रभाव से शाप से उद्धार होके परमधाम को पाया। (९६) श्रीययातिजी। श्रीनाहुषजी अर्थात् श्रीनहुषजी के पुत्रं श्रीययातिजी, आखेट को बन में गये वहाँ श्रीशुक्राचार्य की बेटी देवयानी से बहुत बात चीत हुई, संक्षेप यह कि शुक्राचार्यजी ने देवयानी का विवाह राजा ययाति से कर दिया। उनसे दो लड़के हुये ॥ श्रीशुक्राचार्यजी के शाप से वृद्ध' हो गये, फिर अपने पुत्र की सहायता से आपने युवास्वथा पाई, अन्त को घर छोड़ बन में गये ॥ निदान भगवद्भजन के प्रभाव से परमधाम पाया । - -