पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१५८

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mingAM M ERINAMDEWAMRIMEHIना- m astraamarMartantr भक्तिसुधास्वाद तिलक । १३९ आप भगवद्यश के ऐसे बड़े प्रेमी थे कि उसके श्रवण के निमित्त अपने कानों में दस सहस्र कर्णों की सामर्थ्य माँगी और पायी। (४७) महाराज श्रीपरीक्षितजी। हस्तिनापुर के राजा श्रीपरीक्षितजी ही के प्रति, परमहंस श्रीशुकदेवजी ने श्रीमद्भागवत सुनाया कि जो सब पुराणों में श्रेष्ठ तथा पारमहंसी- संहिता है, सबका सार और संसारसमुद्र के तरने की दीर्घ नौका (जहाज) है ॥ आप श्रीमर्जुनजी के पोता थे। भगवान ने गर्भ में ही इनकी विशेष रखा कीथी। आपने "कलियुग" को दण्ड किया था, और इसको वासके लिये पाँच ही स्थान दिये थे अर्थात् (१) हिंसा जहां हो, (२) मद्यपान जहां हो, (३) घृत (जुआ) जहाँ हो, (४) वेश्या जहां रहें और (५) सुवर्ण पर ॥ श्रापको ५००४ वर्ष हुए । (४८) श्रीशेषजी। "शेष सहस्र सीस जग कारण । जो अवतरेउ भूमिभयटारण ॥" "चौदह भुवन सहित ब्रह्मण्डा । एक सीस सरसव सम मंडा।" श्रीशेष भगवान् । श्रीक्षीरशायी प्रभु के शय्या तथा छत्ररूप से अखण्ड सेवा करते हैं और सहस्र मुख से शेषी (भगवत्) का यशगान करते हैं । “अनन्त" के चरित्र का अन्त कौन पा सकता है ? किससे वर्णन हो? ___ "श्रीसम्प्रदाय” के प्रगट करने वाले भाचार्य श्राप ही हैं। इसीलिये श्रीसम्प्रदाय को शेष सम्प्रदाय के नाम से भी पुकारते हैं । आपकी ही सम्प्रदाय "श्रीरामानुज सम्प्रदाय” कही जाती है जिसकी परम्परा यों है (१) नारायण (२) श्रीलक्ष्मीजी (३)श्रीविष्वक्सेन (४) श्री- शठकोप (५) श्रीश्रीनाथ (६) श्रीपुण्डरीकाक्ष (७) श्रीराममिश्र (८) श्रीयामुनाचार्यजी जिनके "भालवन्दारस्तोत्र” इत्यादि हैं (६) श्रीपूर्णाचार्य (१०) स्वामी अनन्त श्रीरामानुज भगवान् ॥