आज की . विशेष आज क्या हुआ जो पूछती है-" इतना कह अचंभे में आ उसकी ओर देखने लगी .
"सुन श्यामा-आज तेरे मुख पर कुछ और पानी है . केश छूटे और आँखें लाल सजल सी दिखाई देती हैं-तन बदन की सुधि है कि नहीं . देख आँचर कहाँ और सिर का घूघट कहाँ है"-वृंदा ने कहा
मैं इस व्यवस्था को सच्ची जान लज्जित हो गई पर जहाँ तक बन पड़ा लाज को लुकाया और उत्तर सोचने लगी . उत्तर सोचने में तो सब भेद खुल ही जाता , झपट कर सुशीला को गोद में उठा चिढ़ी हुई सी बातें करने लगी . "अभी गिर परती तो क्या होता इसी के मारे तो मैं कभी अटारी पर ज्यादा देर नहीं लगाती यह बुरी कही नहीं मानती जब देखो अटा के बाट ही पर बैठती है . गिर परंगी तो खाट पर धरी धरी रोवैगी" इतना कह सुशीला के गाल पर एक चटकन जड़ी कि वह रोने लगी . वृदा ने झट उसे मेरी गोद से ले लिया और चूम चाट उसे खूब सा पुचकारा . मेरी ओर तिउरी चढ़ा और नाक को सकोर "क्यों मार दिया" ऐसा कह लंबी हुई, , अपने प्रश्न का उत्तर भी न लिया . मैंने जाना बलाय टरी, अच्छा हुआ . सत्यवती के साथ वृदा के पीछे ही उतर गई".
मैंने टोका "वाहरी श्यामा १४ वर्ष में जब तुम इतनी चतुर थीं तब आगे न जाने क्या हुआ होगा . पर ढिठाई क्षमा करना मैं शुद्धभाव से तुम्हारी बुद्धिमानी की प्रशंसा करता हूँ फिर क्या हुआ"-श्यामा ने उत्तर दिया "दिन दिन नूतन नूतन शाखा वृक्ष से निकली . उस दिन वृंदा चुप रही . न जाने सचमुच भूल गई वा चतुराई से उसको भुलावा सा दे भुलाये रही, पर कभी कई दिनों तक उस प्रश्न की चर्चा तक ओठों पर न लाई . श्यामसुंदर तो फिर उस समय सब बातें ताड़ गया और मुसकिरा कर हट दिया . मध्याह्न के समय उसने सत्यवती को बुलाकर