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सौंप दिया गया । बालक राजा की ओट ले अनेक स्वार्थी व्यक्तियों ने भाँति भाँति के षड़यंत्र किए और १८५७ के विप्लव में यह उपद्रव इतना बढ़ा कि सरकारी मैनेजर को प्राण खोने पड़े और इसका कुफल विजय-राघव गढ़ नगर और उसके बालक राजा सरयूप्रसाद सिंह को भोगना पड़ा । इलाका तो जब्त हो ही गया साथ ही सरयूप्रसाद सिंह को काले पानी का दंड मिला, परंतु उससे पहले ही उस सत्रह वर्ष के बालक ने आत्महत्या कर ली।

ठाकुर जगमोहन सिंह इसी दुर्भाग्यग्रस्त विजयराघव गढ़ के राज- कुमार थे जिनका जन्म श्रावण शुक्ल चतुर्दशी सं० १९१४ को भारत व्यानी विप्लव के समय हुआ था । पिता ठाकुर सरयूप्रसाद की आत्महत्या के समय उनकी अवस्था केवल छः मास की थी। नौ वर्ष की अवस्था में भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा के लिए काशी भेज दिया जहां वे वाङ्स इंस्टीट्यूट, क्वीन्स कालेज में भर्ती किए गए । उनके लिए उस समय बीस रुपए मासिक पोलिटिकल पेन्शन नियत हुई, पर काशी के तत्कालीन कमिश्नर के प्रभाव से यह वृत्ति जीवन भर के लिए सौ रुपए मासिक की कर दी गई। काशी में उन्होंने बारह वर्ष विद्याध्ययन किया और संस्कृत, अँगरेजी और फ़ारसी के अतिरिक्त बँगला भाषा का भी अच्छा अभ्यास किया। उनके ये बारह वर्ष बहुत अच्छे कटे । 'देवयानी' में उन्होंने लिखा है:

रचे अनेक ग्रंथ जिन बालापन में काशी बासी ।
द्वादश बरस बिताय चैन सो विद्यारस गुन राशी।

काशी में अपने विद्याध्ययन के सम्बंध में श्यामा सरोजनी" में उन्होंने लिखा है:


१ श्री ब्रजरत्नदास रचित 'भारतेन्दु-मंडल' के पृ. ८७-८८ के आधार पर।.