सारिकों कों का झपेट अनंगरंग का लपेट सपत्न जनों का दपेट सबका सब मन को प्रफुल्लित करता है .
पुराने टूटे फूटे दिवाले इस ग्राम के ( की ) प्राचीनता के साक्षी हैं. ग्राम के सीमांत के झाड़ जहाँ झुंड के झुंड कौवे और बकुले बसेरा लेते हैं गवई की शोभा बताते हैं. प्यौ फटते और गोधूली के समय गैयों के खिरके की शोभा जिनके खुरों से उड़ी धूल ऐसी गलियों में छा जाती है मानो कुहिरा गिरता हो. ये भी ग्राम में एक अभिसार का अच्छा समय होता है .
“गोप अथाइन तें उठे गोरज छाई गैल ।
चलु न अलो अभिसार की भली सझोखी सैल ॥"
यहाँ के कोविद भरथरी-गोपीचंदा-भोज-विक्रम-( जिसे 'विकरमाजीत' कहते हैं) लोरिक और चर्दैनी-मीराबाई-आल्हा-ढोला--हरदौल इत्यादिकों की कथा के रसिक हैं-ये विचारे सीधे साधे बुड्ढे जाड़े के दिनों में किसी गरम कौड़े के चारों ओर प्यार बिछा बिछा के अपने परिजनों के साथ युवती और वृद्धा बालक और बालिका युवा और वृद्ध सबके सब बैठ कथा कह कह दिन बिताते हैं .
कोई पढ़ा लिखा पुरुष रामायण और वूजविलास की पोथी बाँचकर टेढ़ा मेढ़ा अर्थ कह सभों में चतुर बन जाता है, ठीक है . {{C|"निरस्थपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते”.{} कोई लड़ाई का हाल कहते कहते बेहाल हो जाता है कोई किसी प्रेम कहानी को सुन किसी के (की) प्रबल विरहवेदना को अनुभव कर आँसू भर लेता है कोई इन्हें मूर्ख ही समझकर हँस देता है . अहीर अहिरिनों के प्रश्नोत्तर साल्हो में हुआ करते हैं . यह भोली कविता भी कैसी होती है-अनुप्रास भी कैसा इन ग्रामीणों को सु[