सुन कर तुम जानोगे कि वह कैसा ग्राम है ." - इतना कह चुप हो रही.मैंने कहा "धन्य है सुंदरी तूने बड़ी दया की जो इतना श्रम कर इस अपावन जन के कानों को ऐसा मनोहर वर्णन सुना के पावन किया. यदि कष्ट न हो तो और सुनावों" देवी मुसकिरा के बोली “भद्र सुनो कहती हूँ" इसकी मुसकिराहट ने मेरे हृदय गगन का तिमिर तुरंत ही मिटा.दिया और बोली "इस पावन अभिराम ग्राम का नाम श्यामापुर है .यहाँ आम के आराम थकित पथिक और पवित्र यात्रियों को विश्राम और आराम देते हैं--यहाँ क्षीरसागर के भगवान् नारायण का मंदिर सुखकंदर इसी गंगा के तट पर विराजमान है . राम लक्ष्मण और जानकी की मूरतें सजीव सूरतें सी झलकती हैं . ऐसा जान पड़ता है मानो अभी उठी बैठती हों . मंदिर के चारों ओर गौर उपल की छरदिवाली दिवाली की शोभा को लजाती है . मंदिर तो ऐसा जान पड़ता है मानो प्रालेय पर्वत का कंदर हो भगवान् रामचंद्र के सन्मुख गरुड़ की सुंदर मूर्ति कर कमल जोरे सेवा की तप्तरता सुचाती है . सोने का घंटा सोने ही की सांकर में लटका धर्म के अटका सा झूलता दीन दुःखी दर्शनियों के खटका को सटकाता है . भटका भटका भी कोई यद्यपि किसी दुःख का झटका खाए हो यहाँ आकर विराम पाता है, और मनोरंजन दुःखभंजन खंजन--गंजन विलोल विलोचनी जनकदुलारी के कृपाकटाक्ष को देखते ही सब दुःख दारिद्र छुटाता है . राम और लक्ष्मण की शोभा कौन कह सक्ता है-
"शोभा सीव सुभग दोउ वीरा । नील पीत जलजात. सरीरा ॥
मोर पंख सिर सोहत नीके । गुच्छे बिच बिच कुसुमकली के ॥
भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए । श्रवण सुभग भूषण छबि छाए ।
विकट भृकुटि कच घूघरवारे । नव सरोज लोचन रतनारे ॥
चारु चिबुक नासिका कपोला । हास बिलास लेत मन मोला ॥