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Prem Sampattilata, Shyamalata,Shyama vinaya,Sajjanastak and many other miscellaneous works.

और अपने अन्य ग्रंथों में भी जहाँ तहाँ अपना परिचय लिख दिया है। इनका जीवन एक प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति की करुण कहानी है । ये विजयराघव गढ़ के राजकुमार थे । इनके जन्म से पूर्व विजयराघव गढ़ की समृद्धि कैसी थी इसका वर्णन स्वयं इनकी रचना में देखिये। 'ऋतुसंहार' की भूमिका में उस राज्य के प्राकृतिक सौन्दर्य के वर्णन के पश्चात् कवि लिखता है:

तिन श्री रावव बाहुबल निरभय सब नर लोग ।
बसत विजयराघव गढ़ाहें सदा सुखी गत सोग ।
सदा सुखी गत सोग रोग बिनु भोग विभूषित ।
बर्नाश्रम में निष्ठ इष्ट रत सिष्ट अदूपित ।
जगमोहन सब भौंन भरे हीरा मनि मोतिन ।
लखियत सब पुर सुखी जगत जगमग जन जोतिन ।

परंतु इनके समय में वही विजयराघव गढ़ खंडहर बन गया था । स्वयं कवि की वाणी सुनिये :

जहाँ विजयराघवपुरी रही फूल सी फूल ।
चहुँ दिसि खंडहर लखत अब लखत होत हिय सूल ।
लखत होय हिय सूल भूमि मिलि गई अटारी ।
प्रभु के बिनु सब गिरी परी हैं शाला भारी ।
अस्त अदि पै अर्क यथा हो गर मगन तहँ ।
उग्र अनिल सों भिन्न मेघ रवि विचरहिं थम्हि जहँ ।
वारीं नूपूर कल करें घोर निशा के काल ।
पीतम हित ( जहँ) उतरहीं संकेतहिं में बाल ।