इस देवयानी और ययाति के (की) सरल प्रीति के विवरन की सार तुम्ही हौ-किसी न किसी मिस से तुम्हारा जप, तप और ध्यान करी लेता हूँ-इसमें भी हमारा तुम्हारा प्रेम गाया गया है-पर प्रकट रूप में नहीं क्योंकि इसके सुनने के पात्र तो कोई भी नहीं है मैं तो तेरा हो चुका-उसी दिन-जिस दिन तुमने मुझे कृतार्थ किया था-
'श्यामा सरोजनी' भी उसी श्यामा को समर्पित किया गया है । अस्तु, 'श्यामास्वप्न', 'श्यामालता', 'देवयानी' और 'श्यामा सरोजनी' सभी में कवि ने अपने प्रेम और प्रेमी जीवन की अभिव्यक्ति की है। इतना ही नहीं इनके अनुवादित ग्रंथों में भी प्रेम की ही चर्चा है । इस प्रेम स्वरूप कवि की प्रेमाभिव्यक्तियाँ वास्तव में अनूठी हैं ।
भारतेन्दु युग के इस प्रेमी कवि ने अपनी रचनाओं में जहाँ तहाँ अपना परिचय भी दे दिया है। पुस्तकों के मुखपृष्ठ पर ही वे अपना पर्याप्त परिचय हिन्दी और अँगरेजी दोनों में दे दिया करते थे । 'देवयानी' के मुखपृष्ठ पर ऊपर देवनागरी में शीर्षक और अपना संक्षिप्त परिचय देकर नोचे उन्होंने अँगरेजी में लिखा है :
Devayani -Story of Devayani and Yayati- Translated from the original Sanskrita, of the Mahabharata into Hindi verse by Thakur Jagmohan Sinha, Member of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland-son of the late Chief of Bijayraghogarh C. P., Author of the Hindi version of the Meghduta, Ritu-Sam- har, Kumarsambhava, Life of Ramlochan Prasad, Pramitakshar Dipika, Prem-Ratnakar,