पृष्ठ:श्यामास्वप्न.djvu/४

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भूमिका

ठाकुर जगमोहन सिंह हिंदी के प्रसिद्ध प्रेमी कवियों-रसखान आलम, घनानंद, बोधा, ठाकुर और भारतेन्दु हरिश्चंद्र-की परम्परा के अंतिम कवि थे जिन्होंने प्रेममय जीवन व्यतीत किया और जिनके साहित्य में प्रेम की उत्कृष्ट और स्वाभाविक व्यंजना हुई है । प्रेम को इन्होंने जीवन-दर्शन के रूप में स्वीकार किया था । 'श्यामालता' (सं०-१९४२ ) के समर्पण में उन्होंने अपने प्रेमी जीवन की एक झाँकी प्रस्तुत की है।उस समर्पण का आरम्भ देखिए :

मैंने तुम्हारे अनेक नाम धरे हैं क्योंकि तुम मेरे इष्ट हो न-और तुम्हारे तो अनेक नाम शास्त्र वेद पुरान काव्य स्वयं गा रहे हैं तो फिर मेरे अकेले नाम धरने से क्या होता है । तुम्हारे सबसे अच्छे नाम श्यामा, दुर्गा, पार्वती, लक्ष्मी, वैष्णवी, त्रिपुरसुंदरी, श्यामसुंदरी, मन-मोहिनी, त्रिभुवन मोहिनी, त्रैलोक्य विजयिनी, सुभद्रा, ब्रह्माणी, अनादिनी,देवी, जगन्मोहिनी इत्यादि, इनमें से मैं तुम्हें कोई एक नाम से पुकार सकता हूँ। पर उपासना भेद से तथा इस काव्य को देख मैं इस समय केवल श्यामा ही कहूँगा । यदि मैं कदाचित् तुम्हें ब्रह्मा, विष्णु,महेश, राम, कृष्ण, बलदेव, नंदगोपाल, माधव, ब्रजचंद्र वा प्राणेश प्रभृति नाम से गाऊँ तो भी सब ठीक है । क्योंकि "अनेक रूप रूपाय" यह गीत तुम्हारा पहिले ही से गाया है । और 'मोमें तोमें खङ्ग खम्भ में' यह भी सभी जानते हैं । सम्हारना-गुस्सा मत होना । हमको सिवाय तेरे और किसी का बल नहीं है तू मेरी इष्ट देवता है । और उसी समर्पण का अंत इस प्रकार किया गया है :