आगे के दो अनुच्छेद ( पृष्ठ ४०) भी उत्तर-रामचरित के निम्नलिखित श्लोकों के रूपांतर मात्र हैं : .
इह समदशकुंताक्रांतवानीरवीरुत्-
प्रसवसुरभिशीतस्वच्छतोया वहन्ति ।
फलभा परिणामश्यामजम्बूनिकुंज-
स्खलनमुखरभूरिस्रोतसो निर्झरिण्यः॥
दधति कुहरभाजामत्र भल्लकयना-
मनुरसितगुरूणि स्त्यानमम्बूकृतानि ।
शिशिरकटुकषायः स्त्यायते सल्लकीना-
मिभदलितविकीर्णग्रन्थिनिष्यन्दगन्धः .॥'
जहँ लपलपात रसना अपार,
सुख सों सोवत अहि फन पसार ।
तिन तप्त साँस सन कहुँ बिसाल,
जरि उठत भयंकर ज्वाल माल ।
दै • गई भूमि जहँ पै दरार,
दीसत कछु कछु जल तिन मँझार ।
अजगर - श्रम - सीकर भासमान,
प्यासे गिरगट तिहि करत पान ।।
इन श्लोकों का अनुवाद सत्यनारायण कविरत्न ने इस प्रकार किया है: यहिं वेतस बल्लरी पै खग बैठि कलोल भरे मृदु बोल सुनावें । तिनसों झरे-पुष्प-सुगंधित तोय बहैं अति सीतल हीतल भावें । फल पुज पकेनि के कारन स्यामल मंजुल जम्बु निकुंज लखावें । उनमें रुकि के करि घोर घनी झरनानि के स्रोत समूह सुहावें ॥ 8